Thought of the day

Thursday, October 18, 2007

बदलाव ज़रूरी है लेकिन...

बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कुछ लिखूँ । पर क्या लिखूँ । ऐसा नहीं कि लिखने को कुछ है ही नहीं मेरे पास । आजकल कलम और स्याही इतनी सस्ती हो गई है कि कुछ भी लिखवा लो । और जिनकी कलम आज भी रौशन है वो बेचारी आज का माहौल में घुटती साँसें ले रही है । वो बेचारी लिखे तो पढे कौन, पढे तो समझे कौन, और समझ भी जाए तो माने कौन...

खैर पर मेरी चिंता यह है ही नहीं । मुझे तो बस कुछ लिखना है ।

तो लिखता हूँ कुछ राजनैतिक परिवेश के बारे में । कैसे हालात खराब हो रहे हैं, कैसे राजनीतिज्ञों का स्तर गिर रहा है । कहाँ एक समय था जब वे हमारे आदर्श थे और आज... । मगर फिर जनमत होगा और मैं उसी पार्टी को वोट दूँगा जिसे देता आया हूँ । क्या करूँ दोनों तरफ एक जैसे ही हैं । या तो अपने वोट की राष्ट्रीय जिम्मेदारी से विमुख हो जाऊँ और अगर एक लटकती सरकार बनती भी है तो मुझे क्या !

मगर, मेरी चिंता तो यह है कि मुझे तो बस कुछ लिखना है ।

तो लिखता हूँ कुछ सरकार की विकर्मठ होने पर । प्रदूषण कम नहीं हुआ, मेरा शहर आज भी गंदा है, सरकारी दफ़्तरों में आज भी काम आधे-अधूरे मन से होता है, सरकार मे सब बे-इमान हैं, सब मेरे दिए टैक्स के पैसे को बेदर्दी से खर्च करते हैं, उनकी तंख्वाह मेरे दिए टैक्स से चलती है फिर भी नखरे करते हैं, कभी कभी तो मेरे ही काम करने के लिए मुझ ही से रिश्वत भी माँगते हैं । कितना कुछ है लिखने को । बहुत ख़राब हालात हैं । शायद यही कलयुग का चरम है । तो कल्कि भगवान कहाँ गुम हैं । अब तो भगवान भी मेरी नहीं सुनते !

पर ठहरो ज़रा ।

* मेरे घर मेरे शादी/त्यौहार/सांस्कृतिक कार्यक्रम और मौहल्ले मे पता नहीं – मेरा लाउडस्पीकर सबसे ऊँचा बजेगा । होता है ध्वनि प्रदूषण तो होने दो – सभी करते हैं, मैं भी करूँगा ।

* होगा किसी को एतराज़ तो खिला दूँगा पुलिसवाले को रू 100-50 । बढती है अराजकता तो बढने दो – अभी फिलहाल काम चलाओ । सभी ऐसा ही करते हैं, मैं भी करूँगा ।

* कार्यक्रम के बाद मेरे घर का कूडा बाहर सडक पर । चलती कार से भी तो हमेशा फैंकता ही हूँ । अब अपनी कार, अपने घर को तो गंदा नहीं रख सकता । सभी ऐसा ही करते हैं, मैं भी करूँगा ।

* मेरे दिए टैक्स से सरकार चलती है । वो अलग बात है कि मैंने कभी अपनी सही आय भी बताई । सरकार तो मेरा कमाया लूटना चाहती है – अच्छा हुआ मुझे आय कम दिखाने का आइडिया आ गया । सभी ऐसा ही करते हैं, मैं भी करूँगा ।

* वो सरकारी दफ़्तर का बाबू कभी मन से काम नही करता । वो अलग बात है कि मैं भी नहीं करता । हमेशा आखिरी तारीख़ का इंतज़ार करता हूँ । कभी कभी तो यथासंभव काम टालता ही रहता हूँ । सभी ऐसा ही करते हैं, मैं भी करूँगा ।

मगर फिर ठहरो !

यह क्या जो कहता हूँ, जो सोचता हूँ – हर समस्या मुझसे शुरू हो कर मुझ पर ही खत्म होती है । मेरा छोटा सा लालच मुझसे एक छोटी सी गलती करवाता है तो वह कई गुणा होकर मेरी ओर ही वापस पलटता है । तो आज से, अभी से मैं बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर रह हूँ – अब मै केवल वही आचरण करूँगा जो मै चाहता हूँ मेरे साथ हो । जानता हूँ राह आसान नहीं है – पर बहुत आसान है क्योंकि अब इरादा कर चुका हूँ मैं ।

और मैं केवल अपनी बात कर रहा हूँ क्योंकि बदलाव मैं चाहता हूँ ।

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