Thought of the day

Monday, January 7, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 6

अब अगर आपने परसों वाला काम कल किया होगा तो बहुत गडबड हुई होगी। आपने किसी ‘जलसम’ को पहचान कर गर मुस्कुराना शुरू किया तो उसका ब्यौरा और विस्तृत हो जाएगा। जो चित्रण पहले मिनट दर मिनट चल रहा था वह सैकेण्डों में आ जाएगा। आयोजन में पर्दों का रंग, कुर्सियों पर चढे कपडे का रंग, कालीन का रंग, उसकी सफाई, खाने के नमक-मिर्च से लेकर स्वाद तक सब पता चल चुका होगा। “अरे हाँ, एक मिनट मैं तो बताना ही भूल गया...” कहकर अभी भी बात अधूरी ही होगी। वाह रे पानी, यही तो खूबी है तेरी जिस सांचे मे गया वैसा ही ढल गया।

अगले व्यक्तित्त्व को पहचानना कभी कभार थोडा मुश्किल हो जाता है। हाँ आपका ध्यान सीधा उनकी कुछ खास आदतों पर चला जाए तो बहुत आसान होता है। आइए कोशिश तो करें और मिलें ‘वायुसम’ से –

* कभी किसी के ऑफ़िस जाएँ। आप उसके सामने बैठे हैं और वह तल्लीनता से अपनी मेज़ की हर वस्तु ठीक कर रहा है। आप सोच रहे हैं – सब ठीक को क्यों बार बार ठीक कर रहा है!
* घर में ऐसे व्यक्ति की सामान देखो – ऐसे मानो सजा हुआ हो – हर चीज़ ठीक एक निश्चित जगह पर!
* आपसे बात करने के लिए जब सोफे/कुर्सी पर बैठेगा तो आसपास नजर घुमाकर जरूर देखेगा कि सब ठीक-ठाक है न!
* आप उससे बात करें – उसका तत्काल सवाल होगा – “फिर इससे क्या होगा?”

बस तत्काल समझ जाइए कि ‘वायुसम’ से मुलाकात हो गई।


इसी क्रम में पिछले लेख –
उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग
1 , 2 , 3 , 4 , 5

संबंधित लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग -
8 , 7 , 6 , 5 , 4 , 3 , 2 , 1

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