अक्सर कुछ लोग मुझसे रूठे रहते होंगे कि मैं उनके सवालों का जवाब नहीं देता। पर उत्तर तो मैंने दे दिया। आप जिस हाव भाव (प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष) से सवाल करते हैं वही उत्तर है आपके प्रश्न का।
एक दोपहर मैं अपने ज्योतिष-गुरू जी के पास बैठा था। एक युगल आया। उनकी समस्या थी कि वे संतानहीन थे। विषय की गंभीरता देखते हुए, गुरूजी ने बेहतर समझा और सभी को कमरे से बाहर निकाल दिया और युगल से अकेले में बात की।
जब युगल चला गया, सभी कमरे में लौटे। अपनी मूढता-वश मैं बोल पडा – गुरूजी यह युगल संतानहीन ही रहेगा न। अब गुरूजी से कोई ऐसा सवाल करने का अर्थ है कि कोई प्रामाणिक तर्क दो या चुप रहो। अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने मुझे देखा – जैसे पूछ रहे हो, तुम्हारी बात का आधार। गुरूजी से तब आज्ञा लेकर मैंने उस युगल के प्रश्न पूछने के तरीके का ज्योतिषीय ग्रंथों के आधार पर विश्लेषण किया। जवाब में गुरूजी मुझे इस स्नेह से देख रहे थे मानों आशीर्वाद दे रहे हों। प्रसाद रूप में उन्होंने ऐसे ही कुछ और तथ्यों की चर्चा की।
तब से मैंने न जाने कितनी भविष्यवाणियाँ केवल भाव-भंगिमाओं कि देखकर ही कर दीं, जो बाद में सच हुईं। तो हे बन्धुओ, मुझे क्षमा करें मैं उत्तर दे चुका हूँ – आखिर आपका सवाल ही तो जवाब है।