Thought of the day

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Monday, September 23, 2019

0026 Reiki - Some Common Myth

Saturday, January 12, 2013

25 Years of Journey

11 January 2013 - I completed 25 years of Journey with Occult Sciences.

I remember trying my hands at giving prediction since 1985. But somehow 11 January 1988 sticks to my memory, for some valid reasons, as a day when I started this journey.

A young school boy, armature in 1988 to a professional astrologer on this day - Everything seems like a quick transition on timeline.

Its time to Thank everyone, who was part of this Journey, for sharing valuable moments of his/her life and thus contributing to my experience.

Thanks to all of you from the core of my heart.

Sanjay Gulati Musafir

Friday, October 23, 2009

रेकी Reiki – Some common Myth

More than often people stop practicing Reiki after few days/months/years. They have innumerable reasons to do so, starting from “Time constraint” to “It didn’t help/work”.

More interesting fact is that almost all want to give it another try or better say “Restart”. But now they land up primarily with three questions:
* Is Reiki still invoked?
* I need to learn all again?
* I forgot the procedure, how will I do?

And then the most peculiar one(s):
* I don’t have any feeling while practicing Reiki?
* Was I properly attuned by my master?

If you are stuck with any such questions – Congratulations – You are on the Right crossroad. All you need is to pick the right road now!

What actually happens!

We get so over indulged with procedures and all that we forget one basic fact – Almighty has chosen you to be a mediator between HIM and You/world.

Did you learn to ask prayers from somebody? 

NO. 

Then where they come from?

Thanks – You have answered all your questions by yourself. Let healing flow from where prayers come!

Someone said it Right “I can always pray for someone when I can’t help him/her”

Sunday, December 16, 2007

पुरूषों के सेहत प्रसाधन

कल मैंने चर्चा की थी कि किस तरह हमारे सांसकृतिक श्रृंगार केवल सौंदर्य भर के लिए नहीं। किस तरह वे स्त्रियों की मदद करते हैं अपनी सेहत को बनाए रखने में। आज चर्चा पुरूषों के लिए।

कुछ दिन पहले कोई महानुभाव अपने लेख में कहते थे कि उन्हें हिन्दु-धर्म इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि यह उनको आज़ादी देता है। पर सच यह है कि हिन्दु धर्म में स्वतंत्रता नहीं – सभी करने या न करने योग्य बातें बहुत स्पष्ट कही गई हैं। इतना समृद्ध और कोई धर्म या जीवन-शैली नहीं। सच यह भी है कि लोग दूसरे धर्मों की ओर आकर्षित होते ही इन्हीं बन्धनों से बचने के लिए हैं। नहीं तो क्या एक धर्म के अनुयायी होते हुए आप दूसरे धर्म की सीख का अनुसरण नहीं कर सकते – इसकी चर्चा शीघ्र ही करूँगा। अभी चर्चा है – हिन्दु धर्म में कही जीवन शैली की। हिन्दु होने में गौरव की बात ही यही है – जीवन शैली।

यहाँ पर सविनय कहना चाहता हूँ कि आपको अपना धर्म बदलने या छोडने का कोई सुझाव नहीं है। मैं इस सोच के भी खिलाफ हूँ।

हिन्दु धर्म ने पुरूषों को भी सेहत प्रसाधन दिए हैं। माथे पर चन्दन का तिलक मन को शांत करता है। मन को एकाग्रित करने में भी यह लाभदायक होता है। पर ऐसा केवल गर्मियों में। सर्दियों में चन्दन का तिलक और उस पर केसर/रौली का तिलक बहुत लाभदायक होता है। जहाँ चन्दन अपने नैसर्गिक गुण प्रदान करता है रौली/केसर अपनी ऊष्णता से मौसम के अनुकूल लाभ देते हैं।

कर्ण-छेदन भी पुरूषों में लाभकारी है। यह जननेंद्रियों के सामान्य स्वास्थ्य को ठीक रखता है। मगर कान छेद कर पहनी मुर्कियाँ (बाली के समान) ही जाएँ।

संबंधित लेख –

Saturday, December 15, 2007

सिंदूर - क्या केवल श्रृंगार है?

हाल ही के दिनों में काफी कुछ लिखा गया सिंदूर के बारे में। देखा जाए तो सिन्दूर, माथे की बिन्दी आदि अब सौन्दर्य प्रसाधन बन गए हैं। पर क्या ये केवल श्रृंगार भर हैं, आइए विचार करें।

आज कल तो पलास्टिक व अन्य पदार्थों से बनी बिन्दियाँ बाजार में सुलभ हैं। केवल चिपकाओ और काम खत्म। बस यहीं से मेरी चर्चा शुरू होती है।

हमारे शरीर में कुल सात चक्र हैं तथा मस्तिष्क आज्ञा चक्र का स्थान है। आज्ञा-चक्र पर लाल रंग की रौली (सिंदूर) लगाने से स्त्रियों में मासिक-धर्म नियमित होता है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों में जननेंद्रियाँ भी स्वस्थ रहती हैं।

कर्ण-छेदन व नाक छेदना भी केवल श्रृंगार भर नहीं। हाँ याद इतना ही रखना है कि कानों में बालियाँ पहनें टॉपस नहीं। यह भी मदद करते हैं स्त्रियों से संबंधित कुछ रोगों को दूर रखने में। केवल सजने-सँवरने की बात होती तो मैं परेशान नहीं करता। मगर सवाल है आपके सामान्य स्वास्थ्य का इसलिए अब सोचना आपको है कि आप क्या चाहती हैं।

पुरूषों के लिए चर्चा कल ...

संबंधित लेख – 

Saturday, October 27, 2007

रेकी – छोडिए साहब मैं नही मानता ...

बहुत सारी दैविक विद्याओं की तरह रेकी भी चर्चा का विषय ही रहती है । एक पक्ष इसे साबित करने में लगा है तो दूसरा नकारने में । जब दोनों ही पक्ष अपना अपना काम कर रहे हैं तो मैं क्यों बीच में पडूँ । तो मैं आपको एक आप-बीती बताता हूँ ।

दिसम्बर 2006 की बात है । मैं जयपुर में था । चर्चा चली तो किसी ने पूछ लिया कि रेकी से क्या क्या किया जा सकता है । मेरा तत्काल उत्तर था – “विश्वास से शुरू होकर विश्वास की पराकाष्ठा तक” । बात और समय दोनों ही बीत गए ।

एक दिन रात के 1 बजे मुझे दिल्ली में फोन आया । वे उस बात का हवाला देते हुए बोले कि मेरी कार इस समय राजस्थान के एक वीरान इलाके में खडी है । बार बार स्टार्ट करने की कोशिश में बैट्री भी जाती रही । अब तो कार स्टार्ट भी नहीं हो रही । क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं कि मैं किसी सुरक्षित स्थान तक पहुँच सकूँ ?

हमेशा की तरह मेरा उत्तर था “मदद तो ईश्वर करेंगे, मेरा केवल प्रयास है” । साथ ही उन्हें हिदायत की कि जब मेरा फोन आए अब तभी स्टार्ट करने की कोशिश करना । इतना कह कर मैं ध्यान की क्रिया में खो गया । जब अनुभूति हुई (कोई रेकी मास्टर इसे समझ सकेगा) तो मैंने उन्हें फोन किया । कार पहले प्रयास में ही स्टार्ट हो गई ।

अब इसके बारे में आप क्या सोचते हैं, मै नहीं जानता । और फिर रेकी की सीमा है भी तो विश्वास से शुरू होकर ...

चिंता नहीं । आप अभी भी स्वतंत्र हैं कहने को - छोडिए साहब मैं नही मानता ...
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