Thought of the day

Often people mistake Raj Yoga dasha to be period of material growth. But they forget that the basis of Raj Yoga is yoga. A person who uses Rajyoga dasha for spiritual growth is truly wealthy.

~ Jyotish Parichaye

Wednesday, November 14, 2007

ज्योतिष – एक श्रापित विद्या

एक दिन नारद जी टहलते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। शिव जी ने कहा “नारद जी, आप तो ज्योतिष के ज्ञाता हो। बताओ अभी सती कहाँ है?”

नारद जी ने ज्योतिषीय गणना की और कहा, “माँ अभी स्नान कर रही हैं और इस समय उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है”

“सती आती है तो उसी से पूछ्ते हैं” शिव जी बोले।


सती आईं तो शिव जी ने सारा किस्सा सुना दिया। इस पर माँ बोली –

“नारद जी आपकी गणना बिल्कुल सही है। पर जो विद्या व्यक्ति के कपडे के भी पार देख ले वह अच्छी नहीं। इसलिए मैं इस विद्या को श्राप देती हूँ कि कभी भी कोई ज्योतिषी पूरा-पूरा नहीं देख पाएगा।“

क्या अर्थ है इसका। केवल दो, अगर बिना किसी पूर्वाग्रह के ध्यान से समझें तो।

* पहला कि ज्योतिष की पहुँच असीम है, अगर ईश्वर स्वयं चाहे तो (प्रश्न शिव जी ने किया, जो खुद त्रिलोक को देखते हैं)

* जैसा कि मैं अपने हर शिष्य को भी समझाता हूँ – अगर ईश्वर ने आपको एक शक्ति दी है, तो कुछ जिम्मेदारी भी है निभाने के लिए। एक ज्योतिषी के रूप में आपका दायित्त्व है कि आप अपने यजमान को ढाँके न कि बीच बाजार नंगा करें। यह दैविक विद्या है। यदि ज्योतिषी अपनी सीमा लाँघेगा तो माँ सती का श्राप लगेगा

कितने ही उदाहरण दे सकता हूँ जहाँ किसी ज्योतिषी पर ईश्वर की असीम कृपा थी। पर जब उसने अपनी सीमा पार की उसकी बुद्धि व विवेक जाता रहा। मैं प्रसन्न हूँ यह स्वीकार कर कि मेरे कथनों की यथार्थता केवल 90 से 99% प्रतिशत है।

चर्चा शेष। आगामी लेखों में चर्चा करूँगा उन कारणों की जहाँ ज्योतिषी खुली आँखों से चूक करते हैं।
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