Thought of the day

Saturday, October 27, 2007

रेकी – छोडिए साहब मैं नही मानता ...

बहुत सारी दैविक विद्याओं की तरह रेकी भी चर्चा का विषय ही रहती है । एक पक्ष इसे साबित करने में लगा है तो दूसरा नकारने में । जब दोनों ही पक्ष अपना अपना काम कर रहे हैं तो मैं क्यों बीच में पडूँ । तो मैं आपको एक आप-बीती बताता हूँ ।

दिसम्बर 2006 की बात है । मैं जयपुर में था । चर्चा चली तो किसी ने पूछ लिया कि रेकी से क्या क्या किया जा सकता है । मेरा तत्काल उत्तर था – “विश्वास से शुरू होकर विश्वास की पराकाष्ठा तक” । बात और समय दोनों ही बीत गए ।

एक दिन रात के 1 बजे मुझे दिल्ली में फोन आया । वे उस बात का हवाला देते हुए बोले कि मेरी कार इस समय राजस्थान के एक वीरान इलाके में खडी है । बार बार स्टार्ट करने की कोशिश में बैट्री भी जाती रही । अब तो कार स्टार्ट भी नहीं हो रही । क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं कि मैं किसी सुरक्षित स्थान तक पहुँच सकूँ ?

हमेशा की तरह मेरा उत्तर था “मदद तो ईश्वर करेंगे, मेरा केवल प्रयास है” । साथ ही उन्हें हिदायत की कि जब मेरा फोन आए अब तभी स्टार्ट करने की कोशिश करना । इतना कह कर मैं ध्यान की क्रिया में खो गया । जब अनुभूति हुई (कोई रेकी मास्टर इसे समझ सकेगा) तो मैंने उन्हें फोन किया । कार पहले प्रयास में ही स्टार्ट हो गई ।

अब इसके बारे में आप क्या सोचते हैं, मै नहीं जानता । और फिर रेकी की सीमा है भी तो विश्वास से शुरू होकर ...

चिंता नहीं । आप अभी भी स्वतंत्र हैं कहने को - छोडिए साहब मैं नही मानता ...
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