मैं हूँ बालक अवगुण का ढेरा
आए तुम ना देखा तुमको
माया से भरमाया मन मेरा
चली पवन जो वो तुम ही थे
उसमें जो जीवन वो तुम ही थे
थे बादल तुम, रंग केसरिया तुम थे
फूल फूल को जाती तितली
हे निर्गुण वो तितली तुम थे
वो भंवरे जो फूलों पर मंडराए
सब दिशा की खुशबू लाए
वो फूल, वो भंवरे, वो खुशबू तुम थे
दर्शन को वो प्यासी अँखियाँ
वो नाम तेरे, चिडियों की सरगम
हे नाथ मेरे वो तुम ही तुम थे
बुझ गए दीपक, छुप गए तारे
अंधेरों मे आशा के द्वारे
वो जलते बुझते दीपक तुम थे
लेकर नई आशा का सूरज
हुई प्रभात तो जगमग तुम थे
तुम हो मैं ही, मैं भी तुम हो
बनकर शंका बैठा जो मन में
वो निराधार वो निर्गुण तुम थे
तुम थे पर न देखा तुमको
आँखों को छलती माया भी तुम थे
तुम ही तुम हो, तुम ही तुम थे
होगा दोष कुछ मेरा ही स्वामी
जो तुम मेरी आँखों से गुम थे
क्षमा करें प्रभु दोष ये मेरा
मैं हूँ बालक अवगुण का ढेरा