अक्सर ऐसा होता है जब पूरा सच न बताना बेहतर होता है। बहुत से लोग इस बात को जानते भी हैं कि संभवतः ज्योतिषी कुछ छिपा गया। मगर जब चर्चा होगी तो दोष यही होगा कि जो हमें ज्योतिषी ने जो बताया वह सच नहीं हुआ।
यूँ इस बात को समझना आसान होगा। अगर हाल की सालों को छोड दूँ जब कैरियर संबंधी परामर्श मेरा सर्वप्रिय विषय हो गया है, मेरे पास अधिक मामले आर्थिक तंगी या वैवाहिक जीवन में असंतोष के आते हैं। दोनों ही विषय ऐसे हैं कि अगर बहुत नज़दीक कुछ आराम मिलता न दिखे तो व्यक्ति भावनात्मक स्तर पर बिखर जाएगा। अक्सर ज्योतिषी के पास लोग ‘आखिरी रास्ता’ मानकर पहुँचते हैं। ऐसे में पूरा सच कहने के लिए यजमान को तैयार करना होता है। आम ज्योतिषी, इसलिए कि परिस्थिति और न बिगडे, महीने दो महीने की आस बँधा कर भेज देता है। पर जब जिंदगी अपने पत्ते खोलती है तो यजमान यह नहीं सोचता कि मेरे भले में ऐसा कहा होगा। उसे एक ही शिकायत रहती है कि ज्योतिषी ने कहा था सब ठीक हो जाएगा – ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मैं आपसे पूछ्ता हूँ – मरीज़ मृत्यु-शय्या तक पहुँच जाए तब भी डॉक्टर यही कहता है कि “ठीक हो जाओगे”। तो क्या वह विज्ञान नहीं। यह तो केवल सामयिक या व्यवहारिक दबाव है जिससे गुजरना ही पडता है। चर्चा अभी शेष है ...