Thought of the day

Thursday, November 22, 2007

हर ज्योतिषी करता है अलग ही विशलेषण – 2

कल अलग लय में था तो चर्चा कहीं की कहीं चली गई। पर जो कल कहा गया उसकी चर्चा करना भी जरूरी था। मेरा किसी के प्रति आक्रोश नहीं। मैं केवल यह स्पष्ट करना चहता था कि किसी भी चीज़ का हम काला पक्ष उजागर कर देते है पर क्या लाभ हुआ या क्या अच्छा है कहते भी नहीं।

पर अभी चर्चा है क्यों होता है भिन्न विश्लेषण। इसका सबसे सप्ष्ट कारण है कि ज्योतिष आज एक असंगठित/अव्यवस्थित क्षेत्र बन कर रह गया है। जब ज्योतिष पर अधिकांश काम हुआ तब ऐसा नहीं था। भारत-खण्ड आठ भागों में बँटा, आठ महर्षियों के अधिपत्य में था। उनमें परस्पर सहयोग था इस बात से पता चलता है कि एक के लेखों में दूसरे महर्षियों द्वारा किए अनुसंधानों का ब्यौरा मिलता है। बाद में आक्रमाणकारियों ने किस हद तक संस्कृति को कुचलने की कोशिश की वह छुपा नहीं है।

बारी आई हमारे युग के ज्योतिषियों की। सबसे पहले तो इतनी विचारधाराएँ है कि एक मत नहीं होते। हर कोई अपनी ही पद्धति को घसीटे जाता है। इससे समुचित अनुसंधान की कमी हुई है। हाल ही के वर्षों मे देखता हूँ कि ज्योतिषी एकमत हो पाए हैं। पर सबको संगठित/व्यवस्थित करने कि लिए बहुत काम बाकी है।

सबसे बडा ह्रास स्वंय ज्योतिषी-वर्ग ने ही किया। अधूरे कचरे ज्ञान के साथ बन गए ज्योतिषी और शुरू आम आदमी का शोषण, । एक ज्योतिषी हैं, वे कहते हैं – तीन सवाल का उत्तर दे दो – पैसा, शादी और व्यवसाय बस हो गई ज्योतिष। पर ज्योतिष और जीवन इतना सीमित तो नही!

इसी कारण मैं कहता हूँ हर कोई ज्योतिषी नहीं। अब सही ज्योतिषी ढूँढें कैसे – जैसे आप डॉक्टर ढूँढते हैं या फिर कोई वकील।

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