Thought of the day

Wednesday, October 31, 2007

मनोदशा व ज्योतिष

कल के लेख में मैंने काले जादू की चर्चा करते मनोदशा का उल्लेख किया था। आज उसी वार्ता को आगे बढा रहा हूँ।

बात दिस्मबर 2001 की है। एक लडके के माता-पिता उसकी कुण्डली दिखाने मेरे पास आए। उनकी सम्स्या थी कि उनका बेटा अचानक बहुत आक्रामक हो गया था। इसका असर उसकी पढाई पर भी बहुत ज़्यादा पढने लगा।

कुण्डली का ध्यान से परीक्षण किया। निम्न बातों पर मेरा ध्यान गया
* बालक का जन्म अमावस्या के समय का है। (समान्यतः ऐसे लोग भावुक होते हैं)
* बुध भी इस अमवस्या के योग में फंसा हुआ है।
* जनवरी 2001 से दशा चन्दमा/राहु की चल रही है।

मैने उनसे पूछा कि पिछ्ले सत्र में (फरवरी 2001) में लडके को कोई सज़ा मिली हो। 

तो उत्तर मिला - 
कि एक दिन होमवर्क नहीं करके गया था तो क्लास-टीचर ने पहले पीटा और फिर उसे सभी कक्षाओं में घुमाया था।

मेरा तत्काल प्रश्न था कि अब उस घटना को वो कैसे याद करता है – क्या आप घर में बार बार उस दिन की चर्चा करते हैं?

माता-पिता स्तब्ध रह गए कि इतनी सहज बात पर उनका ध्यान नहीं गया। वह अध्यापिका वर्तमान सत्र में उस बच्चे को एक विषय पढा रही थी। बच्चा क्योंकि उस अध्यापिका को नित्य मिलता था तो उसके मन में छिपा आक्रोश व भय रूप बदल कर प्रकट हो रहा था।

अंततः बहुत सोच विचार कर मैंने सुझाव दिया कि उस टीचर से निवेदन करें कि कोई उचित अवसर देखकर बच्चे को विशेष स्नेह दें व पूरी कक्षा से ताली बजवाकर उसका सम्मान करें। इससे बच्चे के मन में लगी चोट को आराम मिलेगा। साथ साथ वह अपना खोया आत्मसम्मान व विश्वास भी पुनः प्राप्त करेगा।

आज वह बालक पूरी तरह से स्वस्थ है और अपने सहपाठियों में मेधावी छात्रों में गिना जाता है।
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