Thought of the day

Monday, November 19, 2007

किधर हो गणेश जी की सूण्ड

(Read English version here) (इसका अंग्रेज़ी प्रारूप यहाँ देखें)

हाल ही के वर्षों में गणेश जी कुछ विशेष ही लिकप्रिय हुए हैं। बाज़ार गणपति जी के भिन्न रूपों की तस्वीरों मूर्तियों से अट गया। पर बेचारे निर्माता/कारीगर ज्योतिषी तो नहीं कि उन्हें पता हो कि गजानन भग्वान की सूण्ड किधर घुमानी है। जिधर अच्छी लगी घुमा दी।

भाई तुमने तो सिर्फ सूण्ड घुमा दी पर हम तो घूमते रह गए न। आज तक अपने यजमान को नहीं बता पाए कि सूण्ड किधर होनी चाहिए। सच पूछो तो वक्रतुण्ड भगवान सब आपका किया धरा है। आराम से बैठे थे भक्तों के बीच इतने सालों से। विघ्नहरण तुम्हें भी अच्छा खेल सूझा कि पिछले दो-तीन सालों से सूण्ड दाएँ-बाएँ करने लगे। सूण्ड की तो की भगवन – चलो सीधे रखे थक गई होगी – अपने भक्तों की बुद्धि क्यों दाएँ-बाएँ की।

भगवन मुझ गरीब से कोई भूल हुई हो तो क्षमा करो, पर यूँ परीक्षा तो मत लो। आराम से काम चल रहा। पर अब। जब कभी भी किसी का फोन आ जाता है – कि ‘उन्होंने’ अपने किसी से सुना है, कि कोई किसी को बता रहा था कि गणेश जी की सूण्ड देखकर प्रतिमा खरीदो। अब उन्हें बताता हूँ कि वहम मत करो तो मुझे मूर्ख समझते हैं। और अगर मैं भी उन्हें औरों की तरह मूर्ख बनाता हूँ तो अपने धर्म से जाता हूँ।

बस भगवन अब तो इस बालक की सुन ही लो। या तो अपनी माया हर लो या हे वक्रतुण्ड गजानन – अपनी सूण्ड सीधी रखो भगवन।
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