बहुत दिनों से मेरे कई पठकों की शिकयत थी कि मैंने कोई नया लेख नहीं लिखा। सच यह है कि लिख्नना चाहता था पर कोई ऐसा विषय नहीं सूझ रहा था कि जिसका विचार आते ही लगे “हाँ यह विषय लिखने योग्य है।“ केवल लिखने भर के लिए कुछ भी लिख डालना मेरी आदत का हिस्सा नहीं। खैर।
आइए कुछ गत वर्षों में हुई घटनाओं पर नज़र डालें। इन घटनाओं ने मेरे मन में कुछ सवाल उत्पन्न किए जिनके उत्तर मैं आज भी खोजता हूँ। या फिर मैं जानता हूँ – पर कौन पचडों में पडे। हाल ही दिनों में घटित कुछ घटनाओं ने मुझमें सोई आग को फिर से हवा दी। आज सुबह जब इस लेख को लिखने के विचार से बिस्तर छोडा तो महसूस किया कि मैं जाग गया।
कुछ वर्ष पहले दिल्ली के प्रख्यात (या कुख्यात) बुद्धा जयंती पार्क में एक लडकी के साथ कुछ लोगों ने बलात्कार किया। न्यूज़ चैनल को दो-तीन दिन का मसाला मिल गया। हर चैनल पर चर्चा हुई कि दिल्ली औरतों के लिए कितनी असुरक्षित हो गई है। जो चर्चाएँ हुईं - सब सही था। पर किसी ने एक सवाल का जवाब नहीं दिया – वो लडकी शाम के उस समय उस पार्क में क्या कर रही थी, या गई क्यों। चैनल द्वारा दिए ब्यौरे से यह तो स्पष्ट था कि लडकी को वहाँ उठाकर नहीं लाया गया था, वो मौजूद थी। पर कौन पचडों में पडे।
गत वर्ष दिल्ली में एक बस में बम विस्फोट हुआ। कथित रूप से बस ड्राइवर लोगों की जान बचाते हुए शहीद हुए। घटना कुछ यूँ है। बस में अचानक संदिग्ध बम होने की खबर फैली। ड्राइवर ने बस एक तरफ़ रोकी। उसने बहादुरी दिखाई और उस संदिग्ध बम को बस से बाहर फैंक रह था के वो फट गया। ड्राइवर की मृत्यु हो गई। शाम को न्यूज़ चैनल उसकी बहादुरी की चर्चाओं से भर गए। पर मेरे एक सवाल का जवाब मुझे नहीं मिला। बसों, रेलगाडियों, स्टेशनों पर बडा बडा और बिल्कुल स्पष्ट लिखा रहता है “क़ोई भी लावारिस वस्तु बम हो सकती है। उसे छुएँ नहीं। उसकी सूचना तुरंत नज़दीकी अधिकारी को दें।“ ऐसी परिस्थिति में उस बम को उठाना बहादुरी कहूँ या मूर्खता? पर कौन पचडों में पडे।
पिछ्ले दिनों में कहीं लेख पडा कि ज्योतिषी लूटते हैं। सच है कुछ झोला-छाप ज्योतिषी बन कर बैठ गए हैं। गत वर्ष मैं किसी चैनल के लिए रिकॉर्डिंग कर रहा था। मैं अपने बेबाक बोलने के लिए कुख्यात हूँ। पहली रिकॉर्डिंग के दौरान ही चैनल और विशेष ज्योतिषी वर्ग समझ गया कि अब इन झोला छाप की खैर नहीं। चैनल व उस लॉबी विशेष से बार बार अनुरोध आया कि मैं उन बातों को न कहूँ जो चर्चा व तनाव उत्त्पन करें। मैं अपने कार्यक्रम की शैली अन्य कार्यक्रमों जैसी ही रखूँ। अंततः मुझे वो कार्यक्रम छोडना ही पडा।
सवाल यह है कि यह झोला छाप एक दुकान चलाते हैं। और आप उनसे क्या खरीदने जाते हैं? तत्काल आराम। अब तत्काल आराम तो होता है – आपको या झोला छाप को?
मैं अक्सर सभी से कहता हूँ – डॉक्टर, वकील और ज्योतिषी के पास लोग तब जाते है जब पूरी तरह फ़ँस जाते हैं। फँसने से पहले क्यों नहीं। बाकी दोनों अपने विषय में खुद ही बेहतर बता सकते हैं। हाँ ज्योतिषी से नियमित मिलना सामान्य स्वास्थ्य जाँच जैसा ही है। कुछ बुद्धिमान लोगों ने मेरे इस परामर्श का भरपूर लाभ उठाया है। अब वे मेरी बात का आशय समझने लगे हैं। अक्सर हर मुलाकात में उनका आखिरी सवाल यही होता है कि अब आपसे दुबारा कब आकर मिलना चाहिए।
समझाने कहने की बातें और भी हैं, पर कौन पचडों में पडे।