Thought of the day

I cannot choose how I feel, but I can choose what I do about it.

~ Jyotish Parichaye

Friday, October 12, 2007

तो कुछ और अच्छा होता

बाद मुद्दत के यह एहसास मुझमें जागा है
जो रहता मैं नादान तो कुछ और अच्छा होता


देखकर इंसानों में बढती हैवानियत,
यह एहसास मुझमें जागा है

जो न होता मैं इंसान तो कुछ और अच्छा होता

वो जो करते से मुझसे देवों की बातें
बदले बदले कर्मों से स्वर्गों की बातें
न बनते वो हैवान, तो कुछ और अच्छा होता


वो जो निकले हैं हर गली हर चौराहे पर
देने को सज़ा मेरे कर्मों की
जो न बनते वो भगवान, तो कुछ और अच्छा होता


होता अच्छा जो न पढता मैं भी कुछ पोथियाँ
उल्झी रहती कुछ सुलझी-अनसुलझी सी गुत्थियाँ
या लगता सब करिश्मा, या लगता सब तमाशा
जो रहता मैं नादान तो कुछ और अच्छा होता


बाद मुद्दत के यह एहसास मुझमें जागा है ...




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