Thought of the day

The best way to make your dreams come true is to wake up.

~ Jyotish Parichaye

Thursday, October 25, 2007

जीवन तुम क्या हो

सोच रहा हूँ बैठा इस पल, कि जीवन तुम क्या हो?

कहते हैं कुछ तुम्हें छलावा, आज मिले हो बिछुडोगे कल
किंतु तुम जो आज साथ हो, कल भी मेरे ही साथ थे
संध्या बीती रात आएगी, हम तुम दूर जाएँगे इक पल
लौट आएगा पुनः सवेरा, तुम मिलोगे बस अगले पल
बदल गया जो रूप भी मेरा, भूलूँगा मैं तुम न भूलोगे
जीवन तुम तो अनंत सखा

मधुर-कटु जो अनुभव हैं यह, कहते हैं कुछ तुमने दिए हैं
पर फल जो खा रहा हूँ, बो आया था
और बीज कुछ बो चला हूँ
घटा छा रही है जो श्यामल, उसके आँचल में है प्राणजल
जाऊँगा जो अब मैं यहाँ से, आना उपवन में अगले पल
होंगे फल तब नए वृक्षों पर
कुछ कडवे, कुछ खट्टे-मीठे, तो होंगे कुछ अति मधुर
फिर जीवन तुम कहाँ दोषी हो, तुम तो बस इक दर्पण हो!

सुनो ‘मुसाफिर’ बात हमारी, समझ रहा हूँ व्यथा तुम्हारी
की मानव ने कितनी उन्नति, भूल गया बस उलटी गिनती
इक शून्य है केन्द्र तुम्हारा, उसे खोजना, उसको पाना

निकल सके हो अगर सफर में, अब नहीं खोना तुम्हें अधर में
देख रहे हो जो ये मेले, सुख-दुःख के जो लगे हैं रेले
ये बस तुम्हें घुमाएँगे, जाओगे तुम कहीं ‘मुसाफिर’ तुम्हें वहीं ले

तोड सकोगे जब यह बन्धन, तब तुम मुझको पाओगे
देखोगे जो रूप तुम मेरा, बस चकित रह जाओगे
न सखा हूँ, न दर्पण हूँ, मैं तो बस एक मार्ग हूँ
जाता हुआ क्षितिज की ओर
जिस पर चल कर पा सकते हो, तुम सफ़र का अंतिम छोर।
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