Thought of the day

We are responsible for what we do, no matter how we feel.

~ Jyotish Parichaye

Friday, January 11, 2008

बहुत मुश्किल या बहुत आसान

मेरे पास नया कुछ भी तो नहीं कहने को। सच पूछे तो कभी भी नहीं होता। जो कुछ मैं कहता हूँ वह पहले कभी, कहीं न कहीं कहा जा चुका है। मुझे कुछ समय के लिए एक महापुरूष का सानिध्य प्राप्त हुआ। वे हमेशा कहते थे कि वेद में केवल एक बात कही गई है – “ईश्वर स्वयं हमारे अंदर विद्यमान है। सभी वेद, पुराण, उपनिषद आदि कहानियों और उदाहरणों से भरे हैं। पता नहीं कब किस रूप में कही बात हमारे अंतर को छू जाए और ज्ञान नेत्र खुल जाएँ”।

ईश्वर को समझने का, जानने का केवल एक तरीका है – खुद को समझें मानव के रूप में नहीं, ईश्वरीय घटनाक्रम में एक पात्र के रूप में। कुछ लोग जीवन ईश्वर को ढूँढने में लगा देते हैं, तो कुछ नकारने में। वे जो भी करते हैं वे उनके जन्मजात संस्कार हैं। ईश्वर दोनों ही से बराबर दूरी पर है। न वे ढूँढ पाते हैं, न वे नकार पाते हैं। बस अपने अपने मार्ग पर चलते जाते हैं।

कभी कभी मन सवाल करता है क्या ईश्वर कहीं है भी? 

उत्तर मिलकर आगामी लेखों में ढूँढते हैं...

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