Thought of the day

Tuesday, January 22, 2008

विष्णु दशावतार - एक नज़र यूँ भी

भारतीय संस्कृति, विशेषकर हिन्दु धर्म, में एक विशेषता रही है। कथाओं के खूबसूरत जामे में लपेटकर गूढ बातें आम आदमी तक पहुँचा दी। इसलिए जब भी मैं पौराणिक कथाओं को सुनता हूँ तो उनमें निहित भावों को ढूँढने/समझने का प्रयास करता हूँ।

यहाँ मैं एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहूँगा। विष्णु जी के दशावतार पृथ्वी के विकास-क्रम की कहानी भी हैं।

सबसे पहले पृथ्वी पर जलीय जीव आए – मत्स्य अवतार (वैसे इस का वर्णन अन्य धर्म के ग्रंथों में भी मिलता है)
फिर रेंगने वाले जीव आए – कश्यप अवतार
उसके बाद स्तनपायी आए – वराह अवतार
फिर पृथ्वी पर आई एक अलग प्रजाति – आदिकालीन मनुष्य – नरसिंह अवतार
मानव विकास क्रम में पहले कद में बौने थे – वामन अवतार
अब मानव अपने औज़ार बनाना शुरु कर चुका था – परशुराम अवतार
मनुष्य अब जंगल छोड, सामाजिक ढाँचा अपना चुका था – राम अवतार
अब वह दौर आया जब विभिन्न सभ्यताएं अपने विकास में आगे बढ रहीं थी – कृष्ण अवतार
अब समय था खुद को त्रि-आयाम से भी परे देखने का – बुद्ध अवतार

अब इसे नकारने के लिए तो ईश्वर की विशिष्ट संतानों को कुछ ऐसे वैज्ञानिक ही ढूँढने होंगे जो पृथ्वी के विकास की कुछ नई कहानी सुना सकें। क्योंकि दशावतरों की कथा तो लोकप्रचलित विज्ञान के विकास से भी पुरानी है। और हाँ जब तक वे कुछ ऐसा खोज पाएँ उन्हें यह भी बता दूँ कि द्वारिका की जगह बहुत पहले ही समुद्र में डूबा शहर ढूँढा जा चुका है। वहाँ मिले सामान से इस बात की भी पुष्टि होती है कि सभ्यता विकसित थी।

नीचे दिया यह भाग बाद में जोडा गया है।
अवतारों के संबंध में पुराणादि ग्रंथ कहते हैं –

रामोवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ॥

वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ॥

केतोर्मीनावताश्च ये चान्ये तेपि खटेजाः ।
प्रात्मांशोधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ॥

रामोवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः – इसीलिए हम भगवान राम को सूर्यवंशी और भगवान कृष्ण को चन्द्रवंशी कहते हैं।
बुद्धः सोमसुतस्य – भगवान बुद्ध भी अवतार हैं यह स्पष्ट लिखा है। अतः भगवान बुद्ध के विषय में मतभेद बनाए रखना अब सबकी निजि मान्यता है।
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