मैं अक्सर अपने लेखों में सवाल उठाता हूँ कि क्या वास्तु मायापतियों के लिए ही है। उत्तर है – “हाँ पर नहीं”। यदि ज्योतिष के सभी सिद्धांत सही सही अपने घर में लगाने हों तो मुझे एक फार्म-हाउस बराबर जगह चाहिए, जहाँ एक मकान सब कुछ चयन करके बन सके। पर वास्तविकता तो कुछ और है। अधिकतर मकान-दफ्तर का चयन हम नहीं, हालात करते हैं। मगर ‘यह तो किया ही जा सकता है’ –
* मकान का नक्शा आप बनवा रहें हैं तो यथासम्भव सीढियाँ गोल न बनवाएँ।
* सीढियाँ घडी के क्रम से ऊपर चढें।
* रसोई या रसोई में चूल्हा - दक्षिण या दक्षिण-पूर्व में रखें।
* पूजा का स्थान उत्तर-पूर्व में इस प्रकार हो कि आप पूजा करते समय उत्तर या पूर्व मुखी होकर पूजा करें।
* शयन-कक्ष का वास्तु विवादास्पद है – ज्यादा नहीं कहूँगा – सोते समय आपका सिर दक्षिण या पूर्व की तरफ हो।
* पढते समय आपका और बच्चों का मुख उत्तर हो।
और सबसे ज्यादा जरूरी –
* पर्दे लगाएं पर घर को धूप व हवा से भरपूर रखें। जिस घर में धूप व हवा नहीं, वहाँ का वास्तु ठीक होकर भी ठीक नहीं।