आध्यात्म का क्या अर्थ है – ईश्वर को पाना या कुछ और।
एक सत्य कथा सुनाता हूँ - मेरे एक मित्र के किसी संबंधी की।
इन सज्जन ने कभी किसी से उधार लिया और देने वाले के जीवन काल में ळौटा न सके। बाद में दोनों परिवार दिल्ली की भीड में ऐसे खोए कि पता ही नहीं। नीयत अच्छी हो तो ईश्वर भी साथ देता है। ये महापुरूष आर्थिक तौर पर अच्छे हो गए। एक दिन दिल्ली के ही एक पाँच-सितारा होटल में खाना खाने गए। वहाँ देखा कि मैनेजर तो उसी कर्ज़दाता का पुत्र है। उसे बुलाया और एक चेक काट दिया – जो रकम ली थी उसका मूल और तब तक का ब्याज जोडकर, उसका दुगना। मैनेजर कहता रहा कि पिताजी ने कभी ऐसे उधार का जिक्र नहीं किया था, न ही मैं जानता हूँ। इस पर यह सज्जन बोले – “पर मैं तो जानता हूँ। और दुगना सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं उन्हें तय समय पर रकम लौटा नहीं पाया था”।
जब मुझे पता चला तो इनसे मिलने की बहुत इच्छा हुई। तब पता यह भी चला कि वे बाद में लोगों की खूब मदद करते रहे – लोग ले जाते और इनके पैसे लौटाते नहीं – फिर माँगने आते यह फिर दे देते। मुझे यह इसलिए बताया गया क्योंकि अब उनकी आर्थिक स्थिति मेरी फीस देने योग्य नहीं थी। पर फीस की चाह थी किसे।
जब गया तो पता चला कि वे स्वयं ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने कुछ ऐसा विवेचन अपनी कुण्डली का किया – मैं समझ गया कि वे जानते थे वे इस परिस्थिति में पहुँच जाएँगे। फिर भी कभी किसी को आर्थिक सहायता से मना नहीं किया या अपनी वचनबद्धता से पीछे नहीं हटे।
जब मैं चलने लगा तो पाँच रूपए और चावल मेरे हाथ पर रख दिए। मैने नानुकर की तो बोले “ज्योतिषी को भेंट देकर ही विदा करते हैं”।
मुझे नहीं मालूम कि वे आज जीवित हैं या नहीं – पर जीवित हैं, मेरे अंदर। मैं उन्हें हमेशा ऐसे याद रखता हूँ – एक व्यक्ति जो ‘कल’ जानता था।