आज से कुछ दशक पूर्व मुझे लगता था कि “मैं किसी भी एक व्यक्ति के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकूँ तो बहुत बडी बात होगी”।
आज मैं अपने ही ख्यालों में खोया टहल रहा था कि अपनी इसी बात पर मंथन करने लगा।
बस एक छोटा सा फर्क आ गया है –
आज मैं जानता हूँ कि एक जीवन काल में लाखों-लाखों जीवन को छुआ जा सकता है।
किंतु, यदि मैं किसी के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकता हूँ तो वह केवल एक है – स्वयं अपने।
सोच आज भी वही है, बस नए आयाम जुड गए हैं।