गर यही जीना है दोस्तो तो फिर मरना क्या है...
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने का फिक्र है
भूल गए भीगते हुए टहलना क्या है
सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फुर्सत कहाँ है...
अब रेत पर नंगे पाँव टहलते क्यों नहीं
108 हैं चैनल पर दिल बहलते क्यों नहीं
इंटरनेट से दुनिया में तो टॅच में हैं
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं
मोबाइल लैण्डलाइन सबकी भरमार है
लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?
कब जाना था, शाम का गुजरना क्या है...
तो दोस्तो शहर की इस दौड में, दौड कर करना क्या है...
गर यही जीना है तो मरना क्या है...
उपरोक्त पंक्तियाँ हिन्दी फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" से उद्धरित हैं। यहाँ केवल उन लोगों की सुविधा हेतु डाला जा रहा है जो इन पंक्तियों को लिखित रूप में ढूँढ रहे थे। या उन लोगों के लिए जिनके जीवन में यह पंक्तियाँ कुछ रचनात्मक-सृजनात्मक बदलाव ला सकें। किसी को आहत करने का हमारा कोई प्रयास नहीं है।