बात उन दिनों की है जब मेरे गुरू मुझे ज्योतिष की बारीकियाँ सिखा रहे थे। एक दिन अचानक बोले – “किसी दिन ऐसा होगा कि कुण्डली से देखोगे, सब कुछ बताओगे, सब घटित भी होगा। पर अचानक एक दिन कोई अप्रिय घटना आपके यजमान के जीवन में घटित हो जाएगी। बाद में कुण्डली देखोगे और सोचोगे – इतना आसान था इसे देखना, कैसे चूक गया, क्यों चूक गया!”
मैं आँखों में प्रश्न-चिन्ह लिए एकटक अपने गुरू जी को देख़ रहा था कि वे बोले –
“ईश्वर चाहता ही नहीं कि आपको या यजमान को उस घटना का पता चले”
बात समझ आई पर समझ नहीं आई। बाद में जीवन में कई बार ऐसा हुआ। हर बार बात समझ आती चली गई।
जून 2000 की बात है। एक व्यक्ति मेरे आए। उनकी कुण्डली में कुछ दिखा तो मैं एक विशेष तारीख को इंगित कर बोला “आने वाले दिनों में कार ध्यान से चलाएँ और उस दिन-विशेष पर तो बहुत ध्यान से। आपको चोट आती दिखती है और कार पूरी तरह नष्ट हो जाएगी”
वह व्यक्ति मेरे विश्लेषण की बारीकी से परिचित थे। उस तारीख को वे घबराहट के मारे घर से बाहर ही नहीं निकले। घर में सब्जी कटवाते हुए उनकी अंगुली बुरी तरह कट गई। खासा खून बहा और बा-मुश्किल नियंत्रण में आया।
ऐसा मान कर कि ‘सूली सूल (शूल) बन गई’ वे निश्चिंत हो गए। इस उल्लास में न तो उन्होंने दोबारा परामर्श किया और यह भी भूल गए कि चेतावनी वाहन से संबंधित थी। कुछ दिनों बाद उनकी भयंकर दुर्घटना हुई। दोनों टाँगों की हड्डियाँ टूट गई। कार पूरी तरह नष्ट हो गई। आज नवंबर 2007, आज भी वे बैसाखी लेकर ही चल पाते हैं।
पीछे मुडकर देखता हूँ, उनकी कुण्डली बाँचता हूँ तो यही सोचता हूँ कि ईश्वर चाहता ही नहीं था कि वे सतर्क हों।