कल मैं अपनी एक मित्र से बात कर रहा था। उन्होंने मेरा लेख एक अधूरी मन्नत पढा था और बता रहीं थी कि अक्सर उनके साथ कुछ ऐसा ही होता है। ‘लोग नहीं समझेंगे’ यह सोचकर वे अपने अनुभव किसी से बताती ही नहीं हैं।
मेरा उनसे एक ही सवाल था – जो खुद से भी है और आप से भी – हम ईश्वर से कुछ माँगते ही क्यों हैं? संभवतः हम ईश्वर के दिए से खुश नहीं और अपनी बेहतर सोच के आधार पर उसे अस्वीकार करते हुए कुछ और माँगते हैं। मैंने उन्हें भी राय दी कि वे एक अन्य लेख सरलतम उपाय – ज्योतिषीय मत पढें और पुनः विचार करें।
हे ईश्वर की प्यारी संतानों, हमने बचपन से ही यही सीखा है कि ‘ईश्वर से माँगने में क्या शर्म’। हम माँगते हैं, हमें मिल भी जाता है – पर भुगतान भी तो हम ही करते हैं।
मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ – सृष्टि भी एक खाते के समान है, जो भी लेंगे उसका ब्याज सहित भुगतान करना होगा। और जो देंगे वह भी ब्याज सहित ही कर्मों के खाते में जमा होगा।
शुभकामनाएँ
मेरा उनसे एक ही सवाल था – जो खुद से भी है और आप से भी – हम ईश्वर से कुछ माँगते ही क्यों हैं? संभवतः हम ईश्वर के दिए से खुश नहीं और अपनी बेहतर सोच के आधार पर उसे अस्वीकार करते हुए कुछ और माँगते हैं। मैंने उन्हें भी राय दी कि वे एक अन्य लेख सरलतम उपाय – ज्योतिषीय मत पढें और पुनः विचार करें।
हे ईश्वर की प्यारी संतानों, हमने बचपन से ही यही सीखा है कि ‘ईश्वर से माँगने में क्या शर्म’। हम माँगते हैं, हमें मिल भी जाता है – पर भुगतान भी तो हम ही करते हैं।
मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ – सृष्टि भी एक खाते के समान है, जो भी लेंगे उसका ब्याज सहित भुगतान करना होगा। और जो देंगे वह भी ब्याज सहित ही कर्मों के खाते में जमा होगा।
शुभकामनाएँ
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