Thought of the day

Saturday, January 26, 2008

क्यों होती हैं एक ही त्यौहार की दो तारीखें

गत वर्षों में आपने देखा होगा कि अधिकतर हिन्दु त्यौहार अब दो दिन मनाए जा रहे हैं। एक पक्ष एक दिन कहता है तो दूसरा उससे अगला दिन। क्यों हो रहा है ऐसा - मैं आपके समक्ष तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ। शेष जो आपका विवेक स्वीकार करे।

हिन्दु मत का वर्तमान के लोकप्रचलित कालदर्शक से कोई लेना-देना नहीं। यह तो प्रचलन में भी विक्रमी पंचाग के सदियों बाद आया। विक्रमी पंचाग का दिन सूर्योदय से शुरू होता है तथा अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है।

सीधा स्पष्ट नियम है कि सूर्योदय के समय जो तिथि (सौर-चन्द्र की परस्पर गणना से) है वह उस पूरे दिन की तिथि होगी। पर कभी कभी सूर्योदय के घँटे दो घँटे बाद गणितीय आधार पर तिथि बदल जाती है और वह अगले दिन सूर्योदय तक चलती रहती है।

अब सैद्धांतिक तौर पर वह तिथि अगले दिन मानी जाएगी – सूर्योदय के बाद। मान लीजिए कि आज सप्तमी है और सूर्योदय के कुछ घंटे बाद, गणितीय आधार से, अष्टमी आरंभ हो जाती है – और वह कल सूर्योदय के बाद तक चलती है। ऐसी स्थिति में आज सप्तमी ही कहलाएगी और कल अष्टमी।

किंतु एक वर्ग जो गणितीय मत को ज्यादा महत्त्व देता है, विज्ञान-विज्ञान सुनाकर, यह कहता है कि गणितीय आधार पर अष्टमी आज इतने बजे शुरू हो गई थी। अतः अगर अष्टमी का कोई त्यौहार है तो वह आज इतने बजे से आरंभ हो गया।

ऐसा नहीं कि जिन्होंने नियम बनाए वे जानते नहीं थे। इसीलिए तो सिद्धांत बनाए ताकि परस्पर मतभेद न हो।

सभी पक्ष आपके सामने हैं – जो आप अपने विवेक से सही जाने उसका अनुसरण करें।

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