Thought of the day

I cannot choose how I feel, but I can choose what I do about it.

~ Jyotish Parichaye

Tuesday, November 13, 2007

जागता हूँ मैं

जागता हूँ क्यों इस रात के
मध्य में, मैं जानता नहीं
शायद जो कहती है यह मुझसे
मैं उसे मानता नहीं

कहती है यह, खो जा तूँ
मधुर सपनों में कहीं
देख दुनिया प्यारी सी
जहाँ खंजर गए भौंके नहीं

कहती है चमकती रेत को
तूँ मान दरिया पानी का
बस यूँ ही गिर जाएगा
अब पर्दा तेरी कहानी का

पर जागता हूँ मैं
बस जागता हूँ मैं

गर मरुभूमि ही है मेरी
कर्मभूमि तो यही सही
पर्दा उठाना या गिराना
मुसाफिर हाथ मेरे कुछ नहीं

कुछ हाथ मेरे है अगर तो
चँद लकीरें हाथ की
माथे से टपकता यह पसीना
या साज़िश इस कायनात की

बढ रहे हैं ये कदम
इसलिए की जान लूँ
जो बह रहा माथे से मेरे
पसीना न केवल मान लूँ

लो बह चली गंगा ए शिव
तेरे बदन कठोर से
बन जाएगी नव-जीवना
बह जाएगी जिस ओर से

जागता हूँ क्यों इस रात के
मध्य में, मैं जानता नहीं
शायद जो कहती है यह मुझसे
मैं उसे मानता नहीं
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