मुझे बहुत वर्ष लगे गाँधी जी के मर्म को समझने में। शायद अब भी समझ ही रहा हूँ। मैं हमेशा सोचा करता था कि क्यों सिर्फ एक घटना के चलते गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया और वह भी हठधर्म तक जाकर। अब समझ आता है।
यदि उस समय गाँधी जी चौरा-चौरी की घटना को मात्र एक दुर्घटना मानकर नजरअंदाज़ कर देते तो स्वीकारणीय मापदण्डों में गिरावट को स्वीकार करने जैसा होता। और शायद फिर घटनाएँ और उन्हें स्वीकार करने का एक दौर ही शुरू हो जाता।
पर यह सब मैं आज क्यों कह रहा हूँ – अभी-अभी समाचार पढा कि राजस्थान में एक SHO को जिन्दा जला दिया गया।
कब तक हम अपने मापदण्डों को गिरने देंगे और इंसानियत का बलात्कार खुलेआम स्वीकार करते रहेंगे ?