जैसा कि मैं कल जिक्र कर चुका कि स्त्री जब परेशान हो या थकी हो तो बात करके खुद को चुस्त करती है। ऐसे में आमतौर पर औरत को सबसे शिकायत होती है – सब्जी वाला, दूध वाला, किरयाना वाला, पडोसी, दफ्तर में पानी पिलाने वाले से लेकर बॉस तक – सभी से वह परेशान है। लेकिन रुकिए...
आप क्या कर रहे हैं! समझाइए मत! वह किसी से परेशान नहीं है। यह तरीका है औरत का अपनी परेशनी निकालने का। मगर आप और मैं लग जाते हैं समझाने। और बात कहाँ पहुँच जाती है - “तुम कौन सा मेरी सुनते हो” तक।
सच मानिए वह परेशान है, पर वह इतनी सशक्त भी है कि अपनी समस्याएँ खुद सुलझा ले। आप यदि मदद ही करना चहते हैं तो उन्हें कहने दीजिए और आप सुनते रहिए। जब वे जवाब के लिए आपकी ओर देखे तो आप का उत्तर होना चाहिए “मैं समझ सकता हूँ। मैं तुम्हारी जगह होता तो शायद संभव नहीं था, पर जानता हूँ तुम इतनी समझदार हो कि संभाल लोगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ”
बस यही तो चाहिए था। कोई अपना जो उसके दिल की बात सुन सके और बता सके कि वह सही है। याद है वह स्त्री जो मेरे ऑफिस में दनदनाती घुसी और मैंने क्या जवाब दिया था (पढें)। चर्चा कल आगे बढाऊँगा।
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