कुछ दिन पहले किसी लेख में पढा कि ‘सपनों का अनुवाद’ अब विज्ञान बन गया है। मेरा सवाल तो बस इतना है कि यह तो सदा से ही विज्ञान था। और शायद मेरे कथन को किसी की प्रमाण की जरूरत ही नहीं। विज्ञान इस तथाकथित वैज्ञानिक-युग से पहले भी था। हमने अपनी संस्कृति से अगर मुँह मोड रखा है तो दुर्भाग्य हमारा है।
जब मैं विदेशों मे होता हूँ या विदेशियों से मिलता हूँ, तो उनकी लगन देखकर दुःख भरी प्रसन्नता होती है। यह सोच कर कि जिन विद्याओं का स्वयं भारतीय तिरस्कार कर रहे हैं, विदेशी किस उत्सुकता से उन्हीं विद्या की गहराइयों को समझने/सीखने का प्रयास कर रहे हैं – मन में सुख-दुःख की समानांतर लहर दौड जाती है। मित्रो सूर्य तो आकाश में ही है और रहेगा भी – हम उसे माने या न माने।
जहां तक प्रश्न है सपनों के अनुवाद का – वह इतना आसान नहीं, जैसा कि कुछ लोगों ने दुकान लगा कर तमाशा बना रखा है। यह देखा तो यह होगा, वह देखा तो वह होगा – केवल इतना सीमित नहीं है सपनों का पडना या समझना। इसे बारीकी से संदर्भों में समझना पडता है। एक ही सपना दो व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ लिए हो सकता है।
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मानव अस्तित्त्व का चौथा आयाम
शकुन विचार
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जहां तक प्रश्न है सपनों के अनुवाद का – वह इतना आसान नहीं, जैसा कि कुछ लोगों ने दुकान लगा कर तमाशा बना रखा है। यह देखा तो यह होगा, वह देखा तो वह होगा – केवल इतना सीमित नहीं है सपनों का पडना या समझना। इसे बारीकी से संदर्भों में समझना पडता है। एक ही सपना दो व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ लिए हो सकता है।
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