आज भारत एक ऐसे दौर में है – जहाँ वह प्रगतिशील देशों की सूची से निकल कर तेजी से प्रगति करती अर्थव्यव्स्थाओं में शामिल हो गया है। यह रफ्तार भी तब हासिल की गई जब दुनिया मंदी और अनिश्चितता के दौर से गुज़र रही है। अच्छा लगता है सोचकर, सिवाय इसके कि कहीं कोई ठोकर खाने का अंदेशा तो नहीं।
जहाँ तक मेरा विश्लेषण जाता है, अभी तो रफ्तार और तेज होगी। यह सच है कि डॉलर कमजोर होने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को झटका लगा है। पर दुनिया इतनी छोटी भी तो नहीं – बहुत नए आयाम खुल रहे हैं और खुल जाएंगे।
ज्योतिषी को चिंता है जुलाई 2008 से आगे एक वर्ष की। यह वर्ष बहुत तरह से महत्त्वपूर्ण है – जिसकी चर्चा मेरे आगामी लेखों में मिलती रहेगी।
बनते बिगडते हालातों से गुजरते 2010 से भारत पुनः आर्थिक कहलाने की स्थिति में आ ही जाएगा।
आगामी कुछ वर्ष शेयर बाजार से कमाने वालों के लिए स्वर्णिम हैं।
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