अधिकतर मंत्री रात के सन्नाटों में ज्योतिषी के चक्कर काटते हैं। पर किसी में इतना पित्ता नहीं कि यह कह सकें कि ज्योतिषी ने यह राय दी है सो हमें कुछ नीतिगत कदम उठाने चहिए। जब एक मंत्री अपनी वादा करके, फ़ीस के रूप में, ज्योतिष को उच्चतर शिक्षा में नही ला सका तो बेहतर की आस ही क्यों।
मैं तो अपने जापान दौरों के दौरान भी इस बात को गोष्ठियों में उठाता रहा। पर सवाल तो साहस और सहज स्वीकार करने का है।
मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि कारगिल युद्ध से पहले कई ज्योतिषी निरंतर चेतावनी देते रहे। इस वर्ष की भविष्यवाणी में मैंने खास तौर पर पाकिस्तान और बंगलादेश की ओर इशारा किया था। अब लगातार ग्रह उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर इशारा कर रहे हैं। हमारे मंत्री जाते हैं – देखते हैं – कहते हैं कि मेरी यहां आकर आंखे खुली हैं – पर चिंता की कोई बात नहीं है। किस बयान को सच मानूँ। या यह मान लूँ कि 1962 से भारत कुछ सीखा ही नहीं।
क्या भारत का भौगोलिक नक्शा फिर बदलने वाला है? क्या शत्रु केवल सीमाओं पर ही हैं?
इसी क्रम में पिछले लेख –
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आगामी वर्षों में भारत - अर्थ-व्यव्स्था
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