Thought of the day

Wednesday, February 6, 2008

क्या खास है उस कुण्डली में...

किसी युगल ने अपने पुत्र के लिए कुण्डली मिलवाई। कुण्डली अच्छी मिल गई। मैं निरंतर इंतजार में था कि शुभ समाचार आया ही आया – पर नहीं। कुछ दिन बाद वे फिर आए कि यह कुण्डली बाँच दीजिए मिलान के लिए। मेरा सहज उत्तर था – पहली कुण्डली अच्छी मिलती थी, और के ‘चक्कर’ में मत पडो। तत्काल महिला बोलीं “क्या खास है उस कुण्डली में?”

अब परिस्थिति देखें। मेरे लेख क्यों चूकते हैं ज्योतिषी 1 से बिल्कुल उलट, पर दबाव वही। यहाँ स्थिति यह थी कि मेरे यजमान को घर-परिवार-लडकी सब पसंद था। पर उनकी पत्नी पूर्वाग्रहों के चलते नानुकर कर रहीं थी।

मुझे तो उन्हें धन्यवाद ही देना है कि उन्होंने ज्योतिष के इस पक्ष की चर्चा करने को प्रेरित किया।

कुण्डली मिलान में यदि हर कुण्डली को अलग अलग ही बाँचना हो तो बहुत सरल हो। केवल गुण मिलान ही करना हो तो भी सरल हो। किंतु विवाह दो व्यक्तियों, दो परिवारों को एक साथ लाता है। यही मिलान में बाँचा जाता है। क्षमा करें यहाँ चर्चा बाजारू पण्डितों या आपके कम्प्यूटर में पडे सॉफ्टवेयर की हो ही नहीं रही – जो केवल गुण मिला कर बात खत्म कर देते हैं।

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