“पिछले साल दीपावली के बाद से तुम्हारा पढाई में एकाग्रता बढी है। मगर परिणाम अभी भी अच्छे नहीं हैं।“
“जी, दोनों बातें सही हैं”
“इस साल मार्च से तुम्हारे मित्र तुम्हारे ध्यान में भटकाव लाने की सबसे बडी वजह है। मैं तुम्हारे दोस्तों से खुश नहीं”
“मेरे दोस्तों में कोई बुराई नहीं। हाँ ध्यान में भटकाव वाली आपकी बात सही है”
“अप्रैल के बाद दो बातें विशेष हुई – पहला कि तुम्हारे पिताजी का प्रभाव तुम पर विशेष बढा है, दूसरा तुम पढाई से मन हटा रहीं थी”
“जी, दोनों बातें सही हैं”
“गर्मी की छुट्टियों के बाद तुम्हारा ध्यान पढाई में खींचकर लाया गया है”
“आपको कैसे पता चलता है!”
“रक्षाबन्धन के बाद 10-12 दिन तुम परेशान सी क्यों नजर आती हो?”
“मेरे नतीजे अच्छे नहीं आए थे इसलिए निराश थी”
“मगर पिछले एक-डेढ महीने से तुम इरादा कर चुकी हो कि चाहे कुछ हो जाए पर अब पढाई से ध्यान नहीं भटेकागा और ऐसा हो भी रहा है”
“बिल्कुल सही”
“किंतु लगभग इसी समय से कहीं तुम्हारे अंदर पिताजी के डर है कि वे अब किसी भी दिन खूब डाँटने वाले हैं”
“आप मेरे मस्तिष्क का चित्रण कर रहे हैं”
“तो अगर आपके पिताजी को समझा दिया जाए कि आपको डाँटे नहीं तो आपका पेट और पढाई बिल्कुल ठीक हो जाएँगे! निश्चिंत हो जाओ”
इस पर उस लडकी ने बताया कि जब भी उसे पिता का डर सताता है तभी पढाई में भी व्यव्धान आता है और घबराहट से पेट भी खराब हो जाता है। और समस्या ऐसी है कि कोई दवाई काम ही नहीं करती।
अन्य संबंधित लेख –
सही व्यवसाय का चुनाव 1
सही कैरियर का चुनाव 2
मनोदशा व ज्योतिष
सही व्यवसाय का चुनाव 1
सही कैरियर का चुनाव 2
मनोदशा व ज्योतिष