जैसा कि हम पिछले लेखों में जान चुके हैं कि हर व्यक्ति और उसका व्यक्तित्त्व एक अलग साँचे में ढला हुआ है। यहीं से मानव स्वभाव की अनगिनत संभावनाएं प्रस्फुटित होती हैं। इन स्वभावों को समझने का सरलतम तरीका है कि हम कुछ आदतों को मूल-प्रकृति में वर्गीकृत कर लें।
किंतु वर्गीकरण करें कैसे? कुदरत के काम तो कुदरत से ही सहायता लेते हैं। हर वस्तु पांच तत्त्वों से बनी है। आयुर्वेद का भी यही आधार है। सभी तत्त्वों के समिश्रण से ही अलग अलग प्रकृति बनती है। अतः हम मूल प्रकृति को भी इन्हीं तत्वों के आधार पर बाँटेगे और समझेंगे।
* अग्निसम
* भूमिसम
* वायुसम
* जलसम
हम यहाँ आकाश तत्त्व की चर्चा नहीं करेंगे। आकाश-तत्व रहता हर व्यक्ति में है। पर यूँ समझिए कि सोया हुआ सा। जैसे जैसे व्यक्ति में आध्यात्मिक गुण बढते जाते हैं आकाश तत्त्व बढता जाता है। धीरे धीरे वह अन्य गुणों-अवगुणों को आच्छादित कर देता है।
किंतु यहाँ चर्चा है सामान्य जन-जीवन की। इसलिए हम इस लेख-क्रम में अपनी चर्चा को चार मूल प्रक़ृति तक सीमित रखेंगे। ईश्वर ने अनुमति दी तो कभी आगामी लेखों में आकाश तत्व पर भी विस्तृत बातचीत करेंगे। आगे कल...
इसी क्रम में पिछले लेख –
उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग 1 , 2
संबंधित लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग - 8 , 7 , 6 , 5 , 4 , 3 , 2 , 1
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* अग्निसम
* भूमिसम
* वायुसम
* जलसम
हम यहाँ आकाश तत्त्व की चर्चा नहीं करेंगे। आकाश-तत्व रहता हर व्यक्ति में है। पर यूँ समझिए कि सोया हुआ सा। जैसे जैसे व्यक्ति में आध्यात्मिक गुण बढते जाते हैं आकाश तत्त्व बढता जाता है। धीरे धीरे वह अन्य गुणों-अवगुणों को आच्छादित कर देता है।
किंतु यहाँ चर्चा है सामान्य जन-जीवन की। इसलिए हम इस लेख-क्रम में अपनी चर्चा को चार मूल प्रक़ृति तक सीमित रखेंगे। ईश्वर ने अनुमति दी तो कभी आगामी लेखों में आकाश तत्व पर भी विस्तृत बातचीत करेंगे। आगे कल...
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