Thought of the day

Life stream is guided by Destiny. But we are open to perform our daily karma. Our daily karma becomes a guideline to our destiny.

~ Jyotish Parichaye

Tuesday, December 4, 2007

मेरी कुण्डली है या मेरे पत्नी की…

बात वर्ष 2001 की सर्दियों की है। एक बहुत मशहूर ज्योतिषी के ‘ज्योतिष-विद्यालय’ में मैं बतौर विशिष्ट अध्यापक आमंत्रित था। लगभग 40-50 लोग/विद्यार्थी थे। एक सामान्य परिचय के बाद मंच मेरा था। कुछ लोग औरों से अधिक प्रश्न पूछ रहे थे। उनकी सम्स्या एक ही थी कि “ज्योतिष में कोई प्रणाली नहीं, यह विद्या नहीं”। जब से इस विद्या से जुडा हूँ, हर जगह हर तरफ ऐसे सवाल मिल ही जाते हैं। इसलिए हम भी उन्हें नजरअंदाज करना सीखा जाते हैं। जब समस्या कक्षा में व्यव्धान तक पहुँच गई तो मैंने सबसे ज्यादा उत्तेजित व्यक्ति को उठाया और कहा “सामने अपनी कुण्डली बनाओ ”


अब मैंने उसका ब्यौरा शुरू किया – पहले उसके भाई-बहन, उसका व्यवसाय, उसके पिता का व्यव्साय। एक अल्पविराम लिया और उसकी ओर देखा। उसने ‘हाँ’ में सिर हिलाया। मैं आगे शुरू हुआ – उसकी पत्नी का रंग, कद, जाति, रूप, व्यव्साय। फिर उसकी ओर देखा। वह अचरज से कुण्डली को देखकर मुझसे बोला “यह मेरी कुण्डली है या मेरे पत्नी की”

शायद यह चर्चा करना महत्त्वपूर्ण नहीं था। मगर मैं जो कहना चाहता हूँ उसकी भूमिका के लिए जरूरी था।

कुण्डली एक डी.एन.ए. की तरह है, जिससे आप व्यक्ति के जीवन के हर प्रत्यक्ष व परोक्ष पहलू को देख सकते हैं। सवाल सिर्फ दो हैं –
* आप ईश्वर से कितना जुड कर ज्योतिष करते हैं
* ईश्वर ने आपको क्या कहने के लिए चुना है

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