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Thursday, November 29, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 7

अगर किसी को प्यार करते हैं तो जताना उससे भी ज्यादा जरूरी है। हम अक्सर रिश्तों में ऐसा नहीं करते। यह सम्स्या पुरुषों के साथ विशेष होती है। स्त्रियों की मूल प्रकृति में ही प्यार जताने की आदत होती है।

एक दिन एक युगल से चर्चा चल रही थी। पत्नी ने कहा, कि इन्हें कभी ऑफ़िस फोन कर दो तो मुझ पर झल्ला जाते हैं। पति बोले इसे समझना चाहिए कि मैं कहाँ हूँ।

मैंने उस व्यक्ति से पूछा, “आज तुम्हारी छुट्टी है और अभी तुम्हारे बॉस (या कंपनी के फोरमैन) का फोन आ जाए तो पहले दुआ-सलाम करोगे या झल्ला पडोगे”। अगर बॉस के साथ नहीं तो तो पत्नी के साथ क्यों? आप यदि अपने जीवनसाथी को प्यार या सम्मान से संबोधित करते हैं तो हो सकता है सभी की आंखों में पल भर को शरारत दौड जाए पर दिल में आपके प्रति इज्जत बढेगी ही।

शादी के बाद कितनी बार आपने अपनी पत्नी से कहा है कि आज सुन्दर दिख रही हो, यह पोशाक में तुम और भी अच्छी लग रही हो, या आज खाना बहुत स्वाद बनाया है। हाँ किसी दिन नमक-मिर्च ऊपर हो जाए तो...। शाम को आकर कितनी बार आपने बिना शारीरिक भूख के पत्नी को गले लगाया है। नहीं तो बन्धु इसे अपनी आदत का हिस्सा बना लें। और फिर देंखें चामत्कारिक परिवर्तन। कल चर्चा करूँगा स्त्रियों के लिए खास सावधानियों का।

इसी क्रम में पिछले लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 6
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 5
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 3
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 2
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

Tuesday, November 27, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 6

यदि आप ने अभी तक लिखे मेरे इस विषय के लेख पढे हैं और अपने जीवन में लगाने शुरू कर दिए हैं तो एक नई समस्या शुरू हो गई होगी। वह भी पहले से और विकट। वह यह कि अब तो आपका स्वभाव बदल गया है पर आपके साथी में कोई परिवर्तन ही नहीं। आपकी शिकायत सही है मगर यहाँ यह समझना जरूरी है कि आपने पढा और समझा है कि परेशानी कहाँ है। आपका जीवनसाथी तो अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चल रह है। वह अपने अंदर कुछ बदला बदला महसूस कर रहे हैं पूरी तरह समझने का वक्त दें।

अक्सर मैं अपने श्रोताओं से कहता हूँ कि जीवन की गाडी चलाने के लिए एक समझदार बहुत है – और वह आप हैं। क्योंकि आप इस प्रयास में है कि शादी और रिश्ता जिंदा रहे। आप किसी कार में हैं और आपके साथ कुछ और लोग भी। गंतव्य पर पहुँचने के लिए सबको कार नहीं चलानी होगी। आप अकेले भी अगर चलाएँगे तो सभी पहुँच जाएँगे। अतः हताश न हों, चलते रहें।

आपसी तालमेल के बाद जो दूसरी बडी परेशानी रिश्तों में आती है वह है विश्वास की। विश्वास प्यार से पनपता है। और प्यार जताने से बढता है। आप मुझसे असहमत हो सकते है यह कहकर कि “उसे पता है कि मैं उससे प्यार करता/करती हूँ”। पर सच यही है कि प्यार करना अगर जरूरी है तो जताना उससे भी ज्यादा। कल इस पर चर्चा आगे बढाता हूँ।

इसी क्रम में पिछले लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 5
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 3
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 2
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

Monday, November 26, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 5

स्त्रियाँ स्वाभाव से ही कोमल होती हैं। यह मान लेना कि वे भावनात्मक स्तर पर मजबूत हैं सबसे बडी भूल है। खासतौर पर अगर कामकाजी महिला है तो उसकी भावनात्मक जरूरत आम महिला से अधिक होगी।

जैसा कि मैं कल जिक्र कर चुका कि स्त्री जब परेशान हो या थकी हो तो बात करके खुद को चुस्त करती है। ऐसे में आमतौर पर औरत को सबसे शिकायत होती है – सब्जी वाला, दूध वाला, किरयाना वाला, पडोसी, दफ्तर में पानी पिलाने वाले से लेकर बॉस तक – सभी से वह परेशान है। लेकिन रुकिए...

आप क्या कर रहे हैं! समझाइए मत! वह किसी से परेशान नहीं है। यह तरीका है औरत का अपनी परेशनी निकालने का। मगर आप और मैं लग जाते हैं समझाने। और बात कहाँ पहुँच जाती है - “तुम कौन सा मेरी सुनते हो” तक।

सच मानिए वह परेशान है, पर वह इतनी सशक्त भी है कि अपनी समस्याएँ खुद सुलझा ले। आप यदि मदद ही करना चहते हैं तो उन्हें कहने दीजिए और आप सुनते रहिए। जब वे जवाब के लिए आपकी ओर देखे तो आप का उत्तर होना चाहिए “मैं समझ सकता हूँ। मैं तुम्हारी जगह होता तो शायद संभव नहीं था, पर जानता हूँ तुम इतनी समझदार हो कि संभाल लोगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ”

बस यही तो चाहिए था। कोई अपना जो उसके दिल की बात सुन सके और बता सके कि वह सही है। याद है वह स्त्री जो मेरे ऑफिस में दनदनाती घुसी और मैंने क्या जवाब दिया था (पढें)। चर्चा कल आगे बढाऊँगा।

इसी क्रम में पिछले लेख -

Sunday, November 25, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4

हम यह चर्चा कर चुके हैं कि पुरुष सामान्यतः कुछ पल एकाकी पसंद करते हैं। अगर उन्हें एकाकी के क्षणों में बिल्कुल न छेडा जाए तो अक्सर उनमें नव-ऊर्जा समाहित होती है। पुरुष सामान्यतः अपने एकाकी के क्षण अपनी कोई रुचिकर कार्य करके, कोई पसंदीदा कार्यक्रम देखकर बिताना पसंद करते हैं। इस दौरान अगर उन्हें पुकारा जाए या उनका ध्यान भटकाया जाए तो वे सामन्यतः झल्लाते हैं या और ज्यादा इन्हीं कार्यों में तल्लीन हो जाते हैं। सबसे बेहतर है कि एक शांत सा संदेशा देकर छोड दिया जाए और फिर स्वयं उनके बात करने का इंतजार किया जाए।

स्त्रियां सामान्यतः अपने थकावट/परेशानी के क्षणों में अपने दिल की बात कह देना पसंद करती हैं। यदि उन्हें आगे से समुचित उत्साह न मिले तो वे यह मानने लगती हैं कि अब उनका महत्त्व कम हो रहा है। उन्हें अब प्यार नहीं किया जाता।

इसलिए यदि आप पाएँ कि आपकी पत्नी आप से कुछ कहना चहती हैं और आप अभी एकाकी में रहना चहते हैं तो सबसे बेहतर होगा कि आप उनसे कुछ ऐसा कहें “मैं समझ सकता हूँ कि तुम कुछ जरूरी बात करना चहती हो, मैं अभी चुस्त होकर सुनता हूँ”। और बाद में सुनें भी। मगर जब आप अपनी पत्नी से बात करें तो आप भी याद रखें कि उसका मूल स्वभाव आपसे भिन्न है। इसकी चर्चा मैं कल करूँगा।


इसी क्रम में पिछले लेख -
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 3
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 2
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

Saturday, November 24, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 3

आज से विषय को कुछ और गंभीर करते हैं। आज की चर्चा मुख्यतः पुरुष के स्वभाव में आए परिवर्तनों की है।

“तुम अब बदल गए हो। वो रहे ही नहीं जो पहले थे”
“अगर टीवी ही देखना था, तो शादी भी उसी से करते”
“जब तक तुम मुझे बताओगे ही नहीं तो मुझे पता कैसे चलेगा कि सम्स्या क्या है”
“मैं पागलों की तरह तुमसे पूछती रहती हूँ और तुम हो कि कोई जवाब ही नहीं देते”
“ज़रा कुछ पूछो तो चिल्लाने लगते हो”
“मैं सारा दिन तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ और तुम शाम को आते हो और मुझसे बात भी नहीं करते”
(मन में) “इन्हें मेरी भावनाओं मे अब कोई दिलचस्पी ही नहीं, तो फायदा क्या दिल की बात कह कर”

हँसिए मत। सोचिए। कुछ कुछ यही हो रहा है न आपकी ज़िंदगी में। तो क्या किया जाए? वही सवाल जो सभी से पूछता हूँ – अगर दूध की पतीली गरम हो और पकडना जरूरी हो तो क्या करेंगी? किसी कपडे से पकडेगी। बस यही करना – सीधे हाथ नहीं जलाने

मेरी बात को याद कीजिए – पुरुष और स्त्री की मूल प्रकृति अलग अलग है। पुरुष सामान्यतः जब घर लौटते हैं तो कुछ पल पूर्ण एकाकी चाहते हैं। इसे यूँ समझे कि सेल चार्ज हो रहे हैं। यह अंतराल हर पुरुष का अलग होगा।

अब आप कोई बात करना चाहते हैं तो क्या करें। केवल एक सरल संदेशा “मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, जब ठीक समझो तो बताना”। और फिर खामोश रहें। ज्यादातर उत्तर “हूँ” “ठीक है” या एक खामोशी ही होंगे। बिल्कुल शांत रहे। उन्हें पूरा सहयोग दें अकेला छोडकर। कुछ देर बाद आप पाएँगे कि वे अब खुद आपसे बात करना चाह रहे हैं। आगे कल ...


इसी क्रम में पिछले लेख -
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 2
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 2

संबंधों को जीवंत रखने के लिए कुछ बातों को समझ लेना बेहतर होगा। बिना किसी विवाद में गए हमें यह मानना होगा कि स्त्री और पुरुष समान नहीं। चाहे हम नारी मुक्ति मोर्चा खोलें या कुछ और यह समझना ही होगा कि स्त्री और पुरुष भिन्न हैं। यहाँ चर्चा अधिकारों की नहीं प्रकृति की है। पर हम इसे भूलने लगते हैं।

अगर दोनों समान होते तो ईश्वर भी दो साँचों में ढालकर नहीं भेजता। कैसे लडकी बडी होती है तो गुडिया से खेलना, सजना-सँवरना सीख जाती है। कैसे लडके बडे होते होते धमाचौकडी मचाना सीख जाते हैं। एक बहुत छोटा प्रतिशत जनसंख्या ऐसी होती है जिसमें विपरीत लिंग के स्वभाव छलकते हैं। पर मूल प्रकृति नहीं बदलती।

कल मैंने चर्चा की थी 50 शिकायत और 10 विशिषताएँ लिखने की। आशा है न 50 शिकायत पूरी हुई होंगी न 10 विशेषताएँ। मगर बिना आपकी सूची देखे विश्वास से कह सकता हूँ कि जो सबसे पहली विशेषता आपने अपने साथी की लिखी वह बहुत है जीवन भर साथ चलने के लिए। पर समस्याएँ भी तो हैं और जब तक वे हैं साथ चलना आसान नहीं होगा।

आपके इंतज़ार को थोडा सा बढा रहा हूँ, पर सोच समझ कर। आज आप लिखेंगे 10 आपकी आदतें जो संभवतः आपके जीवनसाथी को पसंद नहीं और 10 वो आदतें जो उन्हें पसंद होंगी। विश्वास करें, आपका लिखा व्यर्थ नहीं जाएगा। कल आगे चर्चा बढाऊँगा – लिख कर रखें।


इसी क्रम में पिछले लेख -
जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

Friday, November 23, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 1

मेरी ज्योतिष यात्रा को 20 वर्ष पूरे होने को हैं। इन सालों में अगर कोई मामला सबसे ज्यादा मेरे पास आया तो वह था वैवाहिक जीवन में अशांति का। और सच यह भी है कि इतने सालों में केवल 3 ही मामले ऐसे हैं जहां मैंने तलाक लेने की राय दी। तो बाकी मामलों का क्या हुआ। सबमें मुझे आशा की किरण दिखती थी। ज्यादातर शादियाँ इसलिए टूट जाती हैं क्योंकि सही मार्गदर्शन नहीं मिलता। मैंने जितने भी किस्से देखे सभी में परस्पर तालमेल बिठाने की कमी थी।

कभी कभी आपकी कार या स्कूटर का इंजन आवाज़ करता है। क्या सारा तंत्र ही खराब होता है या किसी खास कलपुर्ज़े की मामूली मरम्म्त से मसला ठीक हो जाता है! बस यही हाल शादी का। एक पुर्ज़ा बिगडता है। सही समय पर सही उपाय नहीं होते। फिर तंत्र बिगडने लगता है। करते करते हालत यहां तक पहुँच जाती है कि सालों से बिगडी चीज़ से एक दिन में ठीक होने की आशा करने लगते हैं। हालात बिगड ही इतने चुके होते हैं कि एक पल और सहना दूभर हो जाता है।

दिसम्बर 2000 की बात है। एक महिला मेरे दफ्तर में दनदनाती घुसीं। छूटते ही बोलीं कि मैं अपने पति को छोड कर मायके जा रही हूँ, हमेशा के लिए। सोचा जाने से पहले आपको बता दूँ। (विश्वास करें उस महिला को मैं अपने जीवन में पहली बार मिल रहा था) मैंने भी तत्काल उत्तर दिया “अरे वाह, तो आखिर तुमने इरादा कर ही लिया। बहुत अच्छा किया”। वह औरत शाँत होकर बैठ गई। उसने पानी पिया। फिर दिल खोल कर अपनी समस्या बताई। चर्चा 4 घँटे चली और फिर वह ससुराल वापस चली गई। अभी कुछ दिन पहले वह महिला मिलने आई, यह बताने कि अब उसका जीवन में सब ठीक चल रहा है।

तो अगर आपको भी अपने जीवनसाथी (पति/पत्नी) से शिकायत है तो कुछ दिन कुछ कदम मेरे साथ चलें। सबसे पहले आज एक कागज़ पर अपने साथी के प्रति 50 शिकायत और 10 उसकी विशेषताएँ लिखकर रखॆं। कल चर्चा यहीं से शुरू करूँगा – लिख कर रखिएगा।
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