Thought of the day

Wednesday, January 9, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 9

अभी तक हमने चर्चा की मानव प्रकृति के विभिन्न स्वरूप की। हमने यह भी समझने का प्रयास किया कि मनुष्य का स्वभाव जटिलताओं से भरा एक मिश्रण है। यहाँ आवश्यक है कि हम एक और विशेष पेचीदगी को पहचान लें।

“एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग”

अक्सर ऐसा ही होता है। लोग एक सामाजिक छवि रखते हैं जो उनकी मूल प्रकृति से बिल्कुल अलग भी हो सकती है। कभी कभी अपने व्यक्तित्व की किसी कमजोरी को ढकने के लिए भी ऐसा किया जाता है। व्यक्ति जितना सुलझा होगा, उसका आवरण भी उतना ही परिष्कृत होगा। अतः बहुत सावधानी भी बरतें।

एक उदाहरण देखें। कोई व्यक्ति मान लेते हैं कि अग्निसम है। मगर वह समझता है कि उसका आवेश उसके लिए हानिकारक है। ऐसे में वह अपने दोष को जलसम या पृथ्वीसम गुणों से आवर्तित कर लेगा। वह ऐसे पेश आएगा मानों बहुत मज़ाकिया या बहुत ही शांत स्वभाव का है।

आने वाले लेखों में मिलकर करते हैं कुछ और महत्त्वपूर्ण बातें।


इसी क्रम में पिछले लेख –
उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग
1 , 2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , 8

संबंधित लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग -
8 , 7 , 6 , 5 , 4 , 3 , 2 , 1
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