Thought of the day

We are responsible for what we do, no matter how we feel.

~ Jyotish Parichaye

Thursday, January 10, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 10

“तुम अब पहले जैसे नहीं रहे” – कितनी आम है न यह पंक्ति उलझे रिश्तों में। हो सकता है हम इस बात को कहते न हों – पर क्या सोचते भी नहीं। यहाँ फिर से इस बात को जान लेना जरूरी है कि उलझे रिश्ते केवल वैवाहिक ही नहीं और भी हैं।

तो क्या फर्क आ गया पहले और अब में। आइए विचार करें।

प्रकृति का मूल स्वभाव है कि विपरीत गुण एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। अग्निसम का स्वाभाविक खिंचाव पृथ्वीसम के प्रति होगा और पृथ्वी का अग्नि की ओर।

अग्निसम को लगता है – कितना शांत स्वभाव है। यही है मेरा पूरक।
पृथ्वीसम सोचता है – जीवन के प्रति कितनी उत्साही है। यही है मेरा पूरक।

और कुछ समय बाद...

अग्निसम सोचता है – इसमें में कोई उत्तेजना नहीं। सब बेकार है।
पृथ्वीसम महसूस करता है – हर बात में उत्तेजना। सब बेकार है।

तो क्या हुआ उस गुण का जिससे आकर्षित हुए थे दोनों – आगामी लेख में...


इसी क्रम में पिछले लेख –
उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग
1 , 2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , 8 , 9

संबंधित लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग -
8 , 7 , 6 , 5 , 4 , 3 , 2 , 1

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