मान लीजिए आपको किसी कार्य-विशेष से सक्रिय ज्वालामुखी पर भेज दिया जाए – क्या करेंगे आप। यह मान लीजिए की आपको जाना ही है – न जाने का विचार छोड कर सोचें कि वहाँ कैसे रहेंगे। जलते उबलते ज्वालामुखी में सीधा प्रवेश करने का प्रयास करेंगे या सुरक्षित दूरी बनाकर काम करेंगे।
नहीं मैं विषय से नहीं भटका। मैं केवल यह बता रहा था कि आप पहले ही से जानते थे कि अग्निसम से कैसे निपटा जाए। मैं तो केवल उसमें कुछ और रचनात्मक बातें जोडने वाला हूँ।
जब ज्वालामुखी फट जाए – सबसे पहले अपनी जिह्वा सिल लें। कोई सफाई नहीं, कोई बहस नहीं। निकलने दो लावा। चेहरे पर भाव ऐसे रखें कि आप को सब समझ आ रहा है। विश्वास करें अगर मेरी बात आप पकड गए तो अगली बार जब अग्निसम चिल्लाएगा – आप बाहर से गम्भीर दिखेंगे और अंदर हँस रहे होंगे। क्योंकि आप जानते हैं क्या हो रहा है।
हालात आपके वश में नहीं – पर उस की प्रतिक्रिया अब आपके वश में आ चुकी है।
अब जब सब लावा उगला जा चुका – तो आप इस आग के गोले को सिर्फ एक मधुर बात से ढेर कर सकते हैं।
“आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। एक बार ऐसे सोच कर देखें...”
अग्निसम का मानना या न मानना, आपकी बात सुनना या न सुनना पूरी तरह से आपके धैर्य के हाथ में है। आगे कल...
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अब जब सब लावा उगला जा चुका – तो आप इस आग के गोले को सिर्फ एक मधुर बात से ढेर कर सकते हैं।
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