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Monday, July 8, 2019

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Tuesday, January 15, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 15

आइए मुलाकात करें ज्ञानसागर वायुसम से। मित्रों इसे अतिश्योक्ति ना समझें। जिस विषय में जानते हैं वहाँ इनसे बहस किजिएगा नहीं और जो नहीं जानते वहाँ चुपचाप जो यह पूछें उसका जवाब दे दीजिए।

मैं यह तो नहीं कह सकता कि यह व्यक्तित्त्व जटिल है। क्योंकि जटिल वह है जो समझ ना आए। हाँ कुछ बातें हैं अगर आपको याद रह गई तो बहुत सहज हैं ये लोग।

इनकी किसी निजी वस्तु को भूले से छुए नहीं – क्योंकि केवल वही जानते हैं उसकी सही स्थिति क्या है। जो यह कह दें वह इनका मूल-मंत्र है, कोई बहस नहीं – केवल वही जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं। हर व्यक्ति की ‘सही’ की निजी परिभाषा है।

वायुसम अपने ख्यालों की ही दुनिया में रहते हैं, अतः अक्सर असुविधाजनक परिस्थितियों में मिलते हैं। हाँ कोई भी निर्णय लेने से पहले बहुत सोच-विचार करते हैं। आम आदमी को यह उबाऊ लग सकता है पर इनके साथ जल्दबाजी न करें। जो जितनी जानकारी मांगे वह दें। बेहतर यह होगा कि स्वयं न कहकर किसी लिखित/प्रकाशित दस्तावेज से जानकारी दें।

मेरी एक बात याद रखें – हर व्यक्ति कई व्यक्तित्त्वों का एक अलग समिश्रण है। उसे एक अलग जगह रखकर उसकी आवश्यकाता अनुसार व्यवहार करें। इति


इसी क्रम में पिछले लेख –
उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग
1 , 2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , 8 , 9 , 10 , 11 , 12 , 13 , 14

संबंधित लेख –
जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग -
8 , 7 , 6 , 5 , 4 , 3 , 2 , 1

Monday, January 14, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 14

पिछले लेखों में हमने पाया कि अग्निसम और जलसम व्यक्तित्त्व के लोगों के लिए सबसे कारगर है आपकी श्रवण क्षमता और सही समय पर सही शब्दों का उपयोग। किंतु भूमिसम व्यक्ति कुछ अलग है।

सामान्यतः यह लोग शांत रहते हैं और अपनी भावनाएं प्रकट नहीं करते। बहुत ज्यादा मेलजोल या भीडभाड भी ये पसंद नहीं करते। अक्सर इनकी इर्दगिर्द रहने वाले यही शिकायत करते हैं “कुछ कहे बताए तो पता चले” “पता नहीं हर समय गुमसुम सा रहना, कुछ बताते भी तो नहीं”

और इनका एक ही उत्तर होगा “कुछ हो तो बताऊँ न”

असल में इनका मूकप्राय रहना अस्वाभाविक होने सा प्रतीत होता है। आप कोई सवाल भी करेंगे तो अक्सर जवाब होगा “जो तुम ठीक समझो”। इससे हम यह मान लेते हैं कि बहुत रूठा है।

केवल दो राय – पहला कि मान लें इनका मौन रहना या हमेशा दुविधा की सी स्थिति में रहना स्वाभाव है। जो आज बताया है वह कल फिर समझाना होगा – हर बार समझाना होगा।

दूसरा यह कि – बेहतर हो कि आप दो चुनाव देकर, कहें “मैं यह समझता हूँ कि आपके लिए यह बेहतर रहेगा”। यदि वे आपसे असहमत होंगे तो बता देंगे नहीं तो वही पुराना “जो तुम ठीक समझो”।

बस याद इतना रखिएगा, कि कभी इन्हें गुस्सा आ गया तो अग्निसम को संभालना आसान है, लेकिन इन्हें... आपको मेरी शुभकामनाएँ...

आगे चर्चा कल...


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उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 13

बहते पानी को कौन बांध सका है। बस यही है जलसम प्रकृति। बेपरवाह, उन्मुक्त लहरों सी उठती गिरती भावनाएं। इन्हें मजा आता है बस किस्से सुनाने का। एक खत्म होने से पहले दूसरा शुरू। कभी कभी तो हैरान होता हूँ कि इतने किस्से लाते कहा से हैं।

मगर आपने अभी कोई काम कहा और बातों में भूल गया। याद है फिल्म ‘शोले’ की ‘बसंती’। हाँ बात हो दो महीने बाद किसी पार्टी की, तो आपको सटीक कितने दिन बचे हैं रोज बता सकते हैं। बस यहीं से समस्या शुरू।

पर स्वीकार कीजिए के वे ऐसे ही हैं। उनके किस्से इस प्यार से सुनिए कि आप रुचि ले रहे हैं। सही समय पर प्यार से टोक कर कहें “आपकी बात बहुत मजेदार है, यह काम कर लें फिर आराम से सुनते हैं”। जहाँ आप टोकना भूले सुबह से शाम हो जाएगी काम कहाँ गया पता नहीं पर किस्सा अभी भी जारी है।

जलसम को बाँधने के लिए किनारे स्थापित करने ही पडते हैं – मगर प्रयास रखें कि कठोरता से पेश ना आएँ। बहुत संवेदनशील है यह व्यक्तित्त्व। आपके लिए जो सामान्य हो सकता है वह इन्हें अंदर तक झकझोर सकता है। चेहरे के हाव भाव पर भी बहुत ध्यान रखें। इनका संवेदन-तंत्र बहुत परिष्कृत है।

आगे कल...


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Sunday, January 13, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 12

मान लीजिए आपको किसी कार्य-विशेष से सक्रिय ज्वालामुखी पर भेज दिया जाए – क्या करेंगे आप। यह मान लीजिए की आपको जाना ही है – न जाने का विचार छोड कर सोचें कि वहाँ कैसे रहेंगे। जलते उबलते ज्वालामुखी में सीधा प्रवेश करने का प्रयास करेंगे या सुरक्षित दूरी बनाकर काम करेंगे।

नहीं मैं विषय से नहीं भटका। मैं केवल यह बता रहा था कि आप पहले ही से जानते थे कि अग्निसम से कैसे निपटा जाए। मैं तो केवल उसमें कुछ और रचनात्मक बातें जोडने वाला हूँ।

जब ज्वालामुखी फट जाए – सबसे पहले अपनी जिह्वा सिल लें। कोई सफाई नहीं, कोई बहस नहीं। निकलने दो लावा। चेहरे पर भाव ऐसे रखें कि आप को सब समझ आ रहा है। विश्वास करें अगर मेरी बात आप पकड गए तो अगली बार जब अग्निसम चिल्लाएगा – आप बाहर से गम्भीर दिखेंगे और अंदर हँस रहे होंगे। क्योंकि आप जानते हैं क्या हो रहा है।

हालात आपके वश में नहीं – पर उस की प्रतिक्रिया अब आपके वश में आ चुकी है।

अब जब सब लावा उगला जा चुका – तो आप इस आग के गोले को सिर्फ एक मधुर बात से ढेर कर सकते हैं।

“आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। एक बार ऐसे सोच कर देखें...”

अग्निसम का मानना या न मानना, आपकी बात सुनना या न सुनना पूरी तरह से आपके धैर्य के हाथ में है। आगे कल...


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Friday, January 11, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 11

कल हमने जाना कि किस तरह शुरु में दिखने वाले गुण बाद में अवगुण दिखने लगते हैं। कुछ ही समय बाद अग्नि पृथ्वी को सुखाने लगती है और पृथ्वी अग्नि को बुझाने। क्या होता है एक वायुसम और जलसम के बीच इसे समझते हैं।

यह तो हम जानते ही हैं कि वायुसम और जलसम चुम्बक से खिंचे चले आएंगे।

वायुसम आज खुश है कि किसी जीवंत व्यक्ति से मुलाकात हुई है।
जलसम की आज हर चर्चा में वायुसम है कि कितना ठहराव है उसमें।

और कुछ समय बाद...

वायुसम सोच रहा है – हर समय ‘बडबड’ चुप रहना कब सीखेगा यह जलसम।
जलसम हर जगह बता रहा है – कितना नीरस है है वह, ठहरे पानी जैसा।

तो हो क्या रहा है! हम पसंद तो करते हैं इसलिए कि वह हमसे अलग है, और पसंद आते ही अपने जैसा बनाने में जुट जाते हैं। अगर अपने दोस्त, साथी, सहकर्मी से उलझे तारों को सुलझाना है तो पहला मूल-मंत्र है कि उन्हें जैसा है वैसा ही स्वीकार करें। पहले स्वयं को बताएं “मुझे वह यथारूप पसंद है”। अब तत्काल उन्हें/उसे “जानते हो मुझे तुम्हारी सबसे अच्छी बात क्या लगती है – तुम्हारा मेरे जीवन में होना”।

कल चर्चा करूँगा – यथारूप स्वीकार कैसे किया जा सकता है। कल मिलते हैं...


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Thursday, January 10, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 10

“तुम अब पहले जैसे नहीं रहे” – कितनी आम है न यह पंक्ति उलझे रिश्तों में। हो सकता है हम इस बात को कहते न हों – पर क्या सोचते भी नहीं। यहाँ फिर से इस बात को जान लेना जरूरी है कि उलझे रिश्ते केवल वैवाहिक ही नहीं और भी हैं।

तो क्या फर्क आ गया पहले और अब में। आइए विचार करें।

प्रकृति का मूल स्वभाव है कि विपरीत गुण एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। अग्निसम का स्वाभाविक खिंचाव पृथ्वीसम के प्रति होगा और पृथ्वी का अग्नि की ओर।

अग्निसम को लगता है – कितना शांत स्वभाव है। यही है मेरा पूरक।
पृथ्वीसम सोचता है – जीवन के प्रति कितनी उत्साही है। यही है मेरा पूरक।

और कुछ समय बाद...

अग्निसम सोचता है – इसमें में कोई उत्तेजना नहीं। सब बेकार है।
पृथ्वीसम महसूस करता है – हर बात में उत्तेजना। सब बेकार है।

तो क्या हुआ उस गुण का जिससे आकर्षित हुए थे दोनों – आगामी लेख में...


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Wednesday, January 9, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 9

अभी तक हमने चर्चा की मानव प्रकृति के विभिन्न स्वरूप की। हमने यह भी समझने का प्रयास किया कि मनुष्य का स्वभाव जटिलताओं से भरा एक मिश्रण है। यहाँ आवश्यक है कि हम एक और विशेष पेचीदगी को पहचान लें।

“एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग”

अक्सर ऐसा ही होता है। लोग एक सामाजिक छवि रखते हैं जो उनकी मूल प्रकृति से बिल्कुल अलग भी हो सकती है। कभी कभी अपने व्यक्तित्व की किसी कमजोरी को ढकने के लिए भी ऐसा किया जाता है। व्यक्ति जितना सुलझा होगा, उसका आवरण भी उतना ही परिष्कृत होगा। अतः बहुत सावधानी भी बरतें।

एक उदाहरण देखें। कोई व्यक्ति मान लेते हैं कि अग्निसम है। मगर वह समझता है कि उसका आवेश उसके लिए हानिकारक है। ऐसे में वह अपने दोष को जलसम या पृथ्वीसम गुणों से आवर्तित कर लेगा। वह ऐसे पेश आएगा मानों बहुत मज़ाकिया या बहुत ही शांत स्वभाव का है।

आने वाले लेखों में मिलकर करते हैं कुछ और महत्त्वपूर्ण बातें।


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Tuesday, January 8, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 8

अगर किसी उलझे धागे को खोलना/सुलझाना हो तो सबसे जरूरी क्या चाहिए? विचार कीजिए।

मानव ईश्वर की बनाई सबसे जटिल रचनाओं में से एक है। हर व्यक्ति दूसरे से अलग। हम चर्चा कर चुके हैं चार मूल प्रकृतियों की। पर क्या मनुष्य के स्वभाव को इतनी सरलता से वर्गीकृत किया जा सकता है। स्पष्ट उत्तर है “नहीं”।

प्रकृति में तीन मूल रंग है – लाल, पीला और नीला। सभी रंग इन्हीं तीन रंगों के अलग-अलग मिश्रण से बने हैं। कभी कभी तो यह भी विश्वास नहीं होता कि इस रंग में ये मूल रंग शामिल हैं। बस यही जटिलता मानव-स्वभाव में है। चार मूल प्रकृतियों – अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल का अनियमित मिश्रण।

हम एक धागा पकड कर सुलझाने लगते हैं तो पता चलता है कि आगे कुछ गाँठ पडी है। अनेकों धागे (मानव-स्वभाव के रूप) एक साथ उलझे पडे हैं। पर कहीं हमें यह पता होना चाहिए कि धागा एक ही – बस उलझा हुआ सा। किसी एक उलझन को काट दिया तो धागा कट जाएगा। अतः काटे नहीं, सुलझाएँ।

और सुलझाने के लिए सबसे पहले चाहिए – सब्र। कल चर्चा आगे बढाऊँगा – तब तक के लिए – इजाज़त।


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Monday, January 7, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 7

तो साहब कैसा लगा कल ‘वायुसम’ से मिलकर। आपके जवाब खत्म हो गए, पर उनके सवाल नहीं। और चिंता मत कीजिए अब भी वे ‘और जानकारी’ चाहते हैं। कल आप जो भी जानकारी उनके पास छोड आए थे अब तक तो वे उसे अच्छे से चाट चुके हैं। अब उनके सवाल और सटीक व बारीक हो चुके हैं। अब जो आपको नहीं पता उनको पता है लेकिन, “एक बात बताना ज़रा...”

तो आइए आज आपकी मुलाकात करवाते हैं ‘भूमिसम’ व्यक्तित्त्व से।

स्वाभाव मानो हमारी धरा – शांत, अडिग, सब कुछ सह जाने वाली। किसी से कोई शिकायत नहीं। सबके साथ पर सबसे अलग। किसी ने कह दिया यह करो तो कर दिया। किसी ने कहा वह करो तो कर दिया। किसी ने कुछ नहीं कहा तो ...। अब कुछ कहा ही नहीं था।

कभी कभी ‘भूमिसम’ और ‘अग्निसम’ व्यक्तित्त्व में धोखा हो जाता है। ऐसा तब होता है जब भूकम्प होता है। अरे मित्रों भूमि वाला नहीं ‘भूमिसम’ वाला। यद्यपि इस व्यक्तित्त्व के लोगों में सहनशक्ति असीम होती है, पर कभी कभार ज्वालामुखी फट ही जाता है अन्दर के लावा को निकालने के लिए। हाँ लावा बाहर भूमि शाँत। पर अग्नि तो साक्षात ज्वाला है – हर समय जलती (या जलाती) है।

अतः व्यक्तित्त्व पहचानते समय अन्य जरूरी लक्ष्णों पर भी ध्यान दें।


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उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 6

अब अगर आपने परसों वाला काम कल किया होगा तो बहुत गडबड हुई होगी। आपने किसी ‘जलसम’ को पहचान कर गर मुस्कुराना शुरू किया तो उसका ब्यौरा और विस्तृत हो जाएगा। जो चित्रण पहले मिनट दर मिनट चल रहा था वह सैकेण्डों में आ जाएगा। आयोजन में पर्दों का रंग, कुर्सियों पर चढे कपडे का रंग, कालीन का रंग, उसकी सफाई, खाने के नमक-मिर्च से लेकर स्वाद तक सब पता चल चुका होगा। “अरे हाँ, एक मिनट मैं तो बताना ही भूल गया...” कहकर अभी भी बात अधूरी ही होगी। वाह रे पानी, यही तो खूबी है तेरी जिस सांचे मे गया वैसा ही ढल गया।

अगले व्यक्तित्त्व को पहचानना कभी कभार थोडा मुश्किल हो जाता है। हाँ आपका ध्यान सीधा उनकी कुछ खास आदतों पर चला जाए तो बहुत आसान होता है। आइए कोशिश तो करें और मिलें ‘वायुसम’ से –

* कभी किसी के ऑफ़िस जाएँ। आप उसके सामने बैठे हैं और वह तल्लीनता से अपनी मेज़ की हर वस्तु ठीक कर रहा है। आप सोच रहे हैं – सब ठीक को क्यों बार बार ठीक कर रहा है!
* घर में ऐसे व्यक्ति की सामान देखो – ऐसे मानो सजा हुआ हो – हर चीज़ ठीक एक निश्चित जगह पर!
* आपसे बात करने के लिए जब सोफे/कुर्सी पर बैठेगा तो आसपास नजर घुमाकर जरूर देखेगा कि सब ठीक-ठाक है न!
* आप उससे बात करें – उसका तत्काल सवाल होगा – “फिर इससे क्या होगा?”

बस तत्काल समझ जाइए कि ‘वायुसम’ से मुलाकात हो गई।


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Saturday, January 5, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 5

कल हमने जाना कि कितना सरल है किसी ‘अग्निसम’ व्यक्ति को पहचानना। आपका तो पता नहीं पर जब मैं इस भेद को समझ पाया तो एक व्यक्ति मुझ पर झल्ला रहा था। मैं यह सोचकर मुस्कुरा रहा था “हाँ यही, मिल गया ‘अग्निसम’”। मैं मुस्कुरा रहा था यह देख वह और झल्ला रहा था और वह झल्ला रहा है यह देख मैं और मुस्कुराता रहा...

खैर। जितना आसान है ‘अग्निसम’ को ढूँढना, उससे भी ज्यादा आसान है ‘जलसम’ व्यक्तित्त्व को ढूँढना। वे हैं ही ऐसे कि एक बार तो बरबस ही ध्यान उनकी ओर खिंच जाए। प्रकृति मानो जल – जहाँ, जिसमें डाला, वहीं उसी रंग में रंग गए। किसी भी आयोजन में ढेरों बातें करते (करते कहूँ या बताते) मिल जाएंगे।

“अरे पता है, उस दिन क्या हुआ...(और मिनट दर मिनट, बात दर बात ब्यौरा शुरू)”
“उसने यह कहा, फिर मैंने यह कहा, फिर उसने यह कहा...”
“तुम उसके बारे में नहीं जानते... (और कहानी शुरू)”

हँसिए मत, खीजिए भी मत। कोई न कोई तो है हमारे आसपास, हम ही में से जो इस प्रकृति का स्वामी है। बस पहचान लीजिए और याद रखें कि यह ‘जलसम’ है – ताकि उलझी डोर सुलझानी आसान हो जाए।


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Friday, January 4, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 4

किसी भी समस्या को सुलझाने का सबसे आसान उपाय है सीधा समस्या की जड पर काम करें। इसके लिए आवश्यक है कि हम समझ सकें कि हमारी प्रकृति और जरूरत क्या है। इसी तरह अन्य पक्ष की प्रकृति और जरूरत क्या है। यहाँ यह समझ लेना भी आवश्यक है कि पुरूष और स्त्री कोई भी किसी प्रकृति का हो सकता है। किसी प्रकृतिअ पर किसी का एकाधिकार नहीं।

आज हम बात करते हैं ‘अग्निसम’ व्यक्ति की।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ‘अग्निसम’ स्वभाव से अत्याधिक गुस्सैल होते हैं। किसी को बात समझाने हो तो ऐसे समझाते है मानों कोई हुक्म दे रहे हों। उनके जीवन का मूलमंत्र है – “मैं सही हूँ”। जहाँ आपने कुछ समझाने की चेष्टा की तो तुरंत उत्तेजित हो जाते हैं। उनको ढूँढने का सबसे आसान तरीका है, सीधा वहाँ जाएँ जहाँ से चिल्लाने की आवाज आ रही हो और आसपास सभी भीगी-बिल्ली बने सुन रहे हों।

आशा है इस लघु जानकारी से आप किसी ‘अग्निसम’ को सरलता से छाँट पाएँगे। अभी ध्येय है यह पता लगाना कि हमारे इर्द-गिर्द जो लोग हैं उनकी मूल-प्रक़ृति क्या है। आगामी लेखों में जहाँ गुत्थियाँ सुलझाने की बात होगी वहाँ कुछ विस्तृत बात करेंगे।


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Thursday, January 3, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 3

जैसा कि हम पिछले लेखों में जान चुके हैं कि हर व्यक्ति और उसका व्यक्तित्त्व एक अलग साँचे में ढला हुआ है। यहीं से मानव स्वभाव की अनगिनत संभावनाएं प्रस्फुटित होती हैं। इन स्वभावों को समझने का सरलतम तरीका है कि हम कुछ आदतों को मूल-प्रकृति में वर्गीकृत कर लें।

किंतु वर्गीकरण करें कैसे? कुदरत के काम तो कुदरत से ही सहायता लेते हैं। हर वस्तु पांच तत्त्वों से बनी है। आयुर्वेद का भी यही आधार है। सभी तत्त्वों के समिश्रण से ही अलग अलग प्रकृति बनती है। अतः हम मूल प्रकृति को भी इन्हीं तत्वों के आधार पर बाँटेगे और समझेंगे।

* अग्निसम
* भूमिसम
* वायुसम
* जलसम

हम यहाँ आकाश तत्त्व की चर्चा नहीं करेंगे। आकाश-तत्व रहता हर व्यक्ति में है। पर यूँ समझिए कि सोया हुआ सा। जैसे जैसे व्यक्ति में आध्यात्मिक गुण बढते जाते हैं आकाश तत्त्व बढता जाता है। धीरे धीरे वह अन्य गुणों-अवगुणों को आच्छादित कर देता है।

किंतु यहाँ चर्चा है सामान्य जन-जीवन की। इसलिए हम इस लेख-क्रम में अपनी चर्चा को चार मूल प्रक़ृति तक सीमित रखेंगे। ईश्वर ने अनुमति दी तो कभी आगामी लेखों में आकाश तत्व पर भी विस्तृत बातचीत करेंगे। आगे कल...


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जीवनसाथी से बढते विवाद – क्या करें - भाग -
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Wednesday, January 2, 2008

उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 2

कल हमने चर्चा की थी आम जीवन में सुनाई देती कुछ आवाजों की। हम जो कहते हैं वह उन्हें समझ नहीं आता और वे भी यही समझते हैं कि हम उनकी बातें नहीं समझ रहे। समय बीतता जाता है समस्याएं गम्भीर रूप धारण कर लेती हैं।

कितने ही लोग मेरे पास आते हैं कि –
* अब उस व्यक्ति के साथ मेरा निर्वाह नहीं
* अब उस ऑफ़िस में काम करना बहुत मुश्किल है

ये समस्याएँ आम हैं। हालात से भागकर हल नहीं निकल सकता। मैं तो तलाक के मामलों में पहली राय यही देता हूँ। अगर आज तुमने तालमेल बिठाना नहीं सीखा तो अपनी भावी पीढियों को क्या सिखाओगे। मेरी बात में ‘बगावत की बू’ हो सकती है। पर इस तथ्य को आजमा कर देख लो – जिस युगल में परस्पर तालमेल की समस्या रही आगे उनकी संतानें भी इसी समस्या से ग्रस्त हैं।

तो आइए मिलजुल कर एक प्रयास करें इस कुचक्र को तोडने का और कोशिश करें यह समझने की कि कितनी आसानी से हम उलझते रिश्तों को सुलझा सकते हैं।


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उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ - भाग
1

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उलझते रिश्ते – कैसे सुलझाएँ 1

यदि कभी कहीं चर्चा हो कि दुनिया का सबसे बडा कलाकार कौन है तो उत्तर होगा ईश्वर/प्रकृति। सच भी है। हर व्यक्ति और उसके व्यक्तित्त्व को एक अलग ही साँचे में ढाला है इस कलाकार ने। एक ओर हम इस जटिल कला को देखकर विस्मित हैं। पर जब बात संबंधों की आती है तो यह एक अनसुलझी सी पहेली बन जाती है।

आइए नजर डालें आपके-मेरे जीवन में सुनाई देती कुछ आवाजों पर। जरूरी नहीं कि सभी आप पर लागू हों। यह तो झलक भर है –

* मुझे समझ नहीं आता कि मेरा सामान ठीक अपनी ही जगह पर वापिस क्यों नहीं होता
* तुम घर संभाल नहीं सकते क्या
* ठीक है सीधे सीधे बताओ क्या हुआ था, इतनी लम्बी कहानी की जरूरत नहीं
* जो मैं कह रहा हूँ बस वही सही है – कोई सवाल जवाब नहीं
* पता नहीं मेरी इतनी सीधी सी बातें तुम्हें किस दिन समझ आएँगी
* तुम अपने दिल की बात क्यों नहीं बताते – हमेशा चुप चुप क्यों रहते हो
* तुम खुले नल पर टोकना कभी नहीं भूलते फिर तेल की शीशी बंद करना और तौलिया ले जाना कैसे भूल जाते हो।
* हाँ, पर ऐसा करने से क्या होगा? अच्छा, तो फिर इससे क्या होगा? हूँ, तो फिर ये करने से... ????

कभी कभी ऐसा नहीं लगता कि शायद आप किसी ऐसी जुबान में बात कर रहे हैं जो आपके मित्र-परिवार-जीवनसाथी को समझ ही नहीं आती!


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Friday, November 30, 2007

जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 8

अपने पहले के लेखों में मैने चर्चा की थी कि पुरुष आमतौर पर एकाकी पल चहते हैं। उसके बाद जब वे कुछ खुलना शुरू करते हैं तो अक्सर कुछ ऐसा होता है कि बात वाद-विवाद में बदल जाती है।

यद्यपि अधिकतर पुरुषों में अपनी परेशानी बताने की आदत नहीं होती, पर कभी कभार सभी अपने मन की बात कह लेते हैं। अक्सर ऐसे समय पर वे अपनी परेशानियों का ज़िक्र करते हैं या अपनी उधेडबुन का। अपने सामान्य वृत्ति के अनुरूप स्त्री उन्हें सलाह देने लगती हैं और कुछ ही पल में पति झल्ला उठते हैं। कभी कभी यह झल्लाहट उनकी आदत का हिस्सा बन जाती है क्योंकि वे यह मानने लगते हैं कि यह आसान तरीका है संवाद खत्म करने का।

यदि आपके पति आप से अपने दिल की बात कह रहे हैं तो केवल सुनें और इस तरह कि आप समझने की कोशिश कर रही हैं। ध्यान रहे कोई सवाल मत पूछें। जब तक आपके पति खुद राय न मांगे राय मत दीजिए। और कभी भी ऐसे शब्द – “तुम गलत कर रहे हो” का प्रयोग मत करें। अपना मत रखना ही है तो “वैसे तुम बेहतर समझते हो, अगर यूँ सोच कर देखें” का प्रयोग करें।

अक्सर कुछ लोग ऐसी शिकायत करते है कि यह तो बनावटी जीवन जीने जैसा है। तो मित्रो, यह बनावटी जीवन जीना नहीं सिर्फ गर्म पतीली को कपडे से उठाने जैसा है – ताकि हाथ न जले।

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